रविवार की प्राथना
गायत्री-मंत्र
ॐ भूर्भुवः स्वः |
तत्सवितुवर्रेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ||
हे प्राणस्वरूप, दुःखहर्ता और सर्वव्यापक, आनन्द के देने वाले प्रभो ! जो आप सर्वज्ञ और सकल जगत् के उत्पादक हैं, हम आपके उस पूजनीयतम, पापनाशक स्वरूप तेज का ध्यान करते हैं, जो हमारी बुद्धियों को प्रकाशित करता है | पिता ! आपसे हमारी बुद्धि कदापि विमुख न हो | आप हमारी बुद्धियों में सदैव प्रकाशित रहें और हमारी बुद्धियों को सत्कर्मों में प्रेरित करें, ऐसी प्रार्थना है |
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|| गणपति वंदना ||
गुरुर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः|
गुर्रुसाक्षात् परब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नमः ||
प्रणम्य शिरसा देवं, गौरीपुत्रं विनायकम् |
भक्तावासं स्मरे नित्यमायुः कामार्थ सिद्धये ||
वक्रतुण्ड महाकाय कोटि सूर्य समप्रभः |
निर्विघ्नं कुरमे देव सर्वकार्येपु सर्वदा ||
लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रिय |
निर्विघ्नं कुरमे देव सर्वकार्येपु सर्वदा ||
गजाननं भूतगणाधि सेवितं, कपित्थ जम्वूफलचारु भक्षणम् |
उमासुतं शोकविनाशकारक, नमामिविघ्ननेश्वरपादपङ्कजम् ||
सर्व विघ्न विनाशाय, सर्व कल्याण हेतवे |
पार्वती प्रिय पुत्राय, श्री गणेशाय नमोनमः ||
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|| आरती श्री गणेश जी की ||
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा |
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ||
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा |
लड्डुअन का भोग लगे, संत करे सेवा || जय ||
एक दन्त दयावन्त, चार भुजा धारी |
मस्तक सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी || जय ||
अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया |
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया || जय ||
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा |
शूरश्याम शरण में आये सुफल कीजे सेवा || जय ||
दीनन की लाज राखो, शंभू सूत वारी |
कामना को पूरी करो जग बलिहारी || जय ||
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|| श्री गणेश आरती – सुखकर्ता दुखहर्ता – जय देव, जय मंगलमुर्ती ||
सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची |
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची ||
सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची |
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची ||
सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची |
कंठी झळके माळ मुक्ताफळांची ।।
जय देव, जय देव
जय देव, जय देव,
जय मंगलमूर्ती, हो श्री मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मन कामनापूर्ती
जय देव, जय देव
रत्नखचित फरा तूज गौरीकुमरा ।
चंदनाची उटी कुंकुम केशरा ।
हिरेजडित मुकुट शोभतो बरा ।
रुणझुणती नूपुरे चरणी घागरीया ।।
जय देव, जय देव
जय देव, जय देव,
जय मंगलमूर्ती, हो श्री मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मन कामनापूर्ती
जय देव, जय देव
लंबोदर पीतांबर फणीवर बंधना ।
सरळ सोंड वक्रतुण्ड त्रिनयना ।
दास रामाचा वाट पाहे सदना ।
संकटी पावावें, निर्वाणी रक्षावे, सुरवरवंदना ।।
जय देव, जय देव
जय देव, जय देव,
जय मंगलमूर्ती, हो श्री मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मन कामनापूर्ती
जय देव, जय देव
घालीन लोटांगण, वंदिन चरण ।
डोळ्यांनी पाहिन रूप तुझे ।
प्रेमे आलिंगीन आनंदे पुजिन ।
भावें ओवाळिन म्हणे नामा ।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विधा द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्व मम देवदेव ।।
कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा,
बुद्धात्मना वा प्रकृतिस्वभावात् ।
करोमि यद्यत् सकलं परस्मै
नारायणायेति समर्पयामि ।।
अच्युतं केशवं रामनारायणं
कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरि ।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं,
जानकीनायकं रामचंद्रं भजे ||
हरे राम हरे राम,
राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण,
कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।
हरे राम हरे राम,
राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण,
कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।
सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची |
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची ||
जय देव, जय देव
जय देव, जय देव,
जय मंगलमूर्ती, हो श्री मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मन कामनापूर्ती
जय देव, जय देव
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|| आरती श्री लक्ष्मी जी की ||
ॐ जय लक्ष्मी माता, (मैया) जय लक्ष्मी माता |
तुमको निशिदिन सेवत, हर विष्णु धाता || ॐ ||
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता |
सूर्य – चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता || ॐ ||
दुर्गारूप निरंजनि, सुख -सम्पति दाता |
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋधि-सिधि-पाता || ॐ ||
तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभ दाता |
कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता || ॐ ||
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता |
सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता || ॐ ||
तुम बिन यज्ञ न होते, व्रत न कोई पाता |
खान पान का वैभव सब तुमसे आता || ॐ ||
शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि जाता |
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पाता || ॐ ||
महालक्ष्मी (जी) की आरती, जो कोई नर गाता |
उर आनंद समाता पाप उतर जाता || ॐ ||
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|| श्री रामचंद्र स्तुति ||
श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम् |
नव कंज लोचन कंजमुख कर-कंज पद कन्जारुणम् ||
कंदर्प अगणित अमित छवि नवनीलनीरद सुंदरम् |
पट्पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि नौमीजनक सुतावरम् ||
भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्यवंश-निकंदनम् |
रघुनंद आनंदकंद कौशलचंद दशरथ-नन्दनम् ||
सर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभुषणं |
आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित-खरदूषणं ||
इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष मुनि-मन-रंजनम् |
मम हृदयकंज, निवास कुरु, कामादि खल-दल गंजनम् ||
मनु जाहीं राँचेउ मिलिह सो बरु सहज सुन्दर सांवरो |
करुना निधान सुजान शीलू सनेह जानत सांवरो ||
एहि भांति गौरी असीस सुनी, सिय सहित हिय हरषी अली |
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि मुदित मन मंदिर चली ||
|| सोरठा || – जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाई कहि |
मंजुल मंगल मूल वाम अङ्ग फरकन लगे ||
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|| रामचरित मानस प्रार्थना ||
जय भगवंत अनन्त अनामय | अनघ अनेक एक करुणामय ||
जय, निर्गुन, जय जय गुन सागरा सुख मन्दिर, सुन्दर अति नागरा ||
जय इन्दिरा-रमन, जय भूधरा अनुपम, अज, अनादि सोभाकरा ||
ग्यान-निधान, अमान, मान-प्रद | पावन, सजस, पुरान वेद वद ||
तग्य कृतग्य अग्यता भजन | नाम अनेक अनाम निरंजन ||
सर्व, सर्व-गत, सर्व उरालय | बससि सदा हम कहु परिपालय ||
द्वंद्व विपति भव फंद विभंजन | हृदय बसि राम काम मद-गंजन ||
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|| आरती श्री रामचंद्रजी की ||
आरती कीजै रामचंद्र जी की |
हरि-हरि दुष्टदलन सीतापति जी की ||
पहली आरती पुष्पन की माला |
काली नाग नाथ लाए गोपाला ||
दूसरी आरती देवकी नन्दन |
भक्त उबारन कंस निकन्दन ||
तीसरी आरती त्रिभुवन मोहे |
रत्न सिहांसन सीता रामजी सोहे ||
चौथी आरती चहुं युग पूजा |
देव निरंजन स्वामी और न दूजा ||
पांचवीं आरती राम को भावे |
रामजी का यश नामदेव जी गावें ||
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|| श्री रामजी की आरती ||
आरती कीजै श्री रघुवर की,
सत् चित् आनन्द शिव सुन्दर की |
दशरथ तनय कौशल्या नन्दन,
सुर, मुनि, रक्षक, दैत्य निकन्दन |
अनुगत भक्त-भक्त उर चन्दन,
मर्यादा पुरुषोत्तम वर की || आरती कीजै श्री ||
निर्गुण सगुण अनूप रूप निधि,
सकल लोक वन्दित विभिन्न विधि |
हरण शोक-भय दायक नव निधि,
माया रहित दिव्य नर वर की || आरती कीजै श्री ||
जानकी पति सुर अधिपति जगपति,
अखिल लोक पालक त्रिलोक गति |
विश्व वन्ध अवन्ह अमित गति,
एक मात्र गति सचराचर की || आरती कीजै श्री ||
शरणागत वत्सल व्रतधारी,
भक्त कल्प तरुवर असुरारी |
नाम लेत जग पावनकारी,
वानर सखा दीन दुःख हर की || आरती कीजै श्री ||
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|| श्री रामायण आरती ||
आरती श्री रामायण जी की |
कीरति कलित ललित सिय पिय की ||
गावत ब्रह्मादिक मुनि नारद, बाल्मीकि विज्ञान विशारद |
शुक सनकादि शेष अरु शारद, बरनि पवन सुत कीरति निकी ||
आरती श्री रामायण जी की….
गावत सन्तत शम्भु भवानी, असु घट सम्भव मुनि विज्ञानी |
व्यास आदि कवि पुज बखानी, काकभुशुंडी गरुड़ के हिय की ||
आरती श्री रामायण जी की….
गावत वेद पुराण अष्टदस, छहों होण शास्त्र सब ग्रंथन को रस |
तन मन धन संतन को सर्वस, सारा अंश सम्मत सब ही की ||
आरती श्री रामायण जी की….
कलिमल हरनि विषय रस फीकी, सुभग सिंगार मुक्ति जुवती की |
हरनि रोग भव भूरी अमी की, तात मात सब विधि तुलसी की ||
आरती श्री रामायण जी की |
कीरत कलित ललित सिय पिय की ||
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|| सीता माता की पवित्र आरती ||
आरती श्रीजनक-दुलारी की | सीताजी रघुबर-प्यारी की ||
जगत-जननि जगकी विस्तारिणि, नित्य सत्य साकेत विहारिणि |
परम् दयामयि दीनोद्धारिणि, मैया भक्तन-हितकारी की ||
आरती श्री जनक-दुलारी की | सीताजी रघुबर-प्यारी की ||
सतिशिरोमणि पति-हित-कारिणि, पति-सेवा-हित-वन-वन-चारिणि |
पति-हित-पति-वियोग-स्वीकारिणि, त्याग-धर्म-मूरति-धारी की ||
आरती श्री जनक-दुलारी की | सीताजी रघुबर-प्यारी की ||
विमल-कीर्ति सब लोकन छाई, नाम लेत पावन मति आई |
सुमिरत कटत कष्ट दुखदायी, शरणागत-जन-भय-हारी की ||
आरती श्री जनक-दुलारी की | सीताजी रघुबर-प्यारी की ||
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|| श्री राम चालीसा ||
श्री रघुवीर भक्त हितकारी | सुन लीजै प्रभु अरज हमारी || १ ||
निशिदिन ध्यान धरै जो कोई | ता सम भक्त और नहिं होई || २ ||
ध्यान धरे शिवजी मन माहीं | ब्रह्म इन्द्र पार नहिं पाहीं || ३ ||
दूत तुम्हार वीर हनुमाना | जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना || ४ ||
तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला | रावण मारि सुरेन प्रतिपाला || ५ ||
तुम अनाथ के नाथ गुंसाई | दीनन के हो सदा सहाई || ६ ||
ब्रहमादिक तव पारन पावैं | सदा ईश तुम्हरो यश गावैं || ७ ||
चारिउ वेद भरत हैं साखी | तुम भक्तन की लज्जा राखीं || ८ ||
गुण गावत शारद मन माहीं | सुरपति ताको पार न पाहीं || ९ ||
नाम तुम्हार लेत जो कोई | ता सम धन्य और नहिं होई || १० ||
राम नाम है अपरम्पारा | चारिहु वेदन जाहि पुकारा || ११ ||
गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो | तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो || १२ ||
शेष रटत नित नाम तुम्हारा | महि को भार शीश पर धारा || १३ ||
फूल समान रहत सो भारा | पाव न कोऊ तुम्हरो पारा || १४ ||
भरत नाम तुम्हरो उर धारो | तासों कबहुं न रण में हारो || १५ ||
नाम शक्षुहन हृदय प्रकाशा | सुमिरत होत शत्रु कर नाशा || १६ ||
लखन तुम्हारे आज्ञाकारी | सदा करत सन्तन रखवारी || १७ ||
ताते रण जीते नहिं कोई | युदध जुरे यमहूं किन होई || १८ ||
महालक्ष्मी धर अवतारा | सब विधि करत पाप को छारा || १९ ||
सीता राम पुनीता गायो | भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो || २० ||
घट सों प्रकट भई सो आई | जाको देखत चन्द्र लजाई || २१ ||
सो तुमरे नित पांव पलोटत | नवो निद्धि चरणन में लोटत || २२ ||
सिद्धि अठारह मंगलकारी | सो तुम पर जावै बलिहारी || २३ ||
औरहु जो अनेक प्रभुताई | सो सीतापति तुमहिं बनाई || २४ ||
इच्छा ते कोटिन संसारा | रचत न लागत पल की बारा || २५ ||
जो तुम्हे चरणन चित लावै | ताकी मुक्ति अवसि हो जावै || २६ ||
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा | नर्गुण ब्रहम अखण्ड अनूपा || २७ ||
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी | सत्य सनातन अन्तर्यामी || २८ ||
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै | सो निश्चय चारों फल पावै || २९ ||
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं | तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं || ३० ||
सुनहु राम तुम तात हमारे | तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे || ३१ ||
तुमहिं देव कुल देव हमारे | तुम गुरु देव प्राण के प्यारे || ३२ ||
जो कुछ हो सो तुम ही राजा | जय जय जय प्रभु राखो लाजा || ३३ ||
राम आत्मा पोषण हारे | जय जय दशरथ राज दुलारे || ३४ ||
ज्ञान ह्रदय दो ज्ञान स्वरूपा | नमो नमो जय जगपति भूपा || ३५ ||
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा | नाम तुम्हार हरत संतापा || ३६ ||
सत्य शुद्ध देवन मुख गाया | बजी दुन्दुभी शंख बजाया || ३७ ||
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन | तुम ही हो हमरे तन मन धन || ३८ ||
याको पाठ करे जो कोई | ज्ञान प्रकट ताके उर होई || ३९ ||
आवागमन मिटै तिहि केरा | सत्य वचन माने शिर मेरा || ४० ||
और आस मन में जो होई | मनवांछित फल पावे सोई || ४१ ||
तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै | तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै || ४२ ||
साग पत्र सो भोग लगावै | सो नर सकल सिद्धता पावै || ४३ ||
अन्त समय रघुबरपुर जाई | जहां जन्म हरि भक्त कहाई || ४४ ||
श्री हरिदास कहै अरु गावै | सो बैकुण्ठ धाम को पावै || ४५ ||
सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय | हरिदास हरि कृपा से, अवसी भक्ति को पाय ||
राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय | जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्ध हो जाय ||
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|| आरती भगवान ब्रह्मा विष्णु महेश जी की ||
ॐ जय शिव ओंकारा, भज जय शिव ओंकारा |
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा || ॐ जय शिव .. ||
एकानन चतुरानन पंचानन राजै |
हंसासन गरुणासन वृषवाहन साजै || ॐ जय शिव .. ||
दो भुज चारु चतुर्भुज दशभुज अति सोहै |
तीनों रूप निरखते त्रिभुवन-जन मोहै || ॐ जय शिव .. ||
अक्षमाला वनमाला रुंडमाला धारी |
त्रिपुरारी कंसारी करमाला धारी || ॐ जय शिव .. ||
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगे |
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे || ॐ जय शिव .. ||
कर मध्ये सुकमण्डल चक्र त्रिशूलधारी |
सुखकारी दुखकारी जग-पालनकारी || ॐ जय शिव .. ||
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका |
प्रण – वाक्षर में शोभित ये तीनों एका || ॐ जय शिव .. ||
त्रिगुणस्वामि जी की आरती जो कोई नर गावै |
कहत शिवानन्द स्वामी मनवाञ्छित फल पावै || ॐ जय शिव .. ||
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|| श्री शिव विनती (श्री रुद्राष्टकम्) ||
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद स्वरूपं |
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाशमाकाशवासंभजेऽहं ||
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं, गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं |
करालं महाकाल कालं कृपालं, गुणागार संसार पारं नतोऽहं ||
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं |
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनीचारु गंगा, लसद् भालबालेन्दु कंठे भुजंगा ||
चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं |
मृगाधीशचर्मांम्बरं मुण्डमालं, प्रियं शंकरं सर्व नाथं भजामि ||
प्रचंडं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखंडं अजं भानु कोटि प्रकाशं |
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं, भजेऽहं भावनीपतिं भावगम्यं ||
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सज्जनानददाता पुरारी |
चिदानंद संदोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ||
न यावद् उमानाथ पदारबिंदं, भजंतीह लोके परे वा नराणं |
न तावत्सुखं शांति सन्तापनाशं, प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ||
न जानामि योगं जपं नैव पूजां, नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं |
जराजन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो || _________________________________________________________
|| अथशिव चालीसा ||
जय गिरिजा पति दीन दयाला , सदा करत सन्तन प्रतिपाला |
भाल चन्द्रमा सोहत नीके , कानन कुण्डल नागफनी के |
अंग गौर शिर गंग बहाये , मुण्डमाल तन छार लगाये |
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे , छवि को देख नाग मुनि मोहे |
मना मातु की हवे दुलारी , बाम अंग सोहत छवि न्यारी |
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी , करत सदा शत्रुन क्षयकारी |
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे , सागर मध्य कमल हैं जैसे |
कार्तिक श्याम और गणराऊ , या छवि को कहि जात न काऊँ |
देवन जबहीं जाय पुकारा , तबही दुःख प्रभु आप निवारा |
किया उपद्रव तारक भारी , देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी |
तुरत षडानन आप पठायउ , लव निमेष महँ मारि गिरायउ |
आप जलंधर असुर संहारा , सुयश तुम्हार विदित संसारा |
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई , सबहिं कृपा कर लीन बचाई |
किया तपहिं भागीरथ भारी , पूरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी |
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं , सेवक स्तुति करत सदाहीं |
वेद नाम महिमा तब गाई , अकथ अनादि भेद नहिं पाई |
प्रकट उदधि मंथन में ज्वाला , जरे सुरासुर भये विहाला |
कीन्ह दया तहँ करी सहाई , नीलकण्ठ तब नाम कहाई |
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा , जीत के लंक विभीषण दीन्हा |
सहस कमल में हो रहे धारी , कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी |
एक कमल प्रभु राखेउ जोई , कमल नयन पूजन चहं सोई |
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर , भये प्रसन्न दिए इच्छित वर |
जय जय जय अनन्त अविनाशी , करहू कृपा घट – घट के वासी |
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै , भ्रमत रहे मोहि चैन न आवे |
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो , यहि अवसर मोहि आन उबारो |
लौ त्रिशूल शत्रुन को मारो , संकट से मोहि आन उबारो |
मातु पिता भ्राता सब कोई , संकट में पूछत नहिं कोई |
स्वामी एक है आस तुम्हारी , आय हरहु अब संकट भारी |
धन निरधन को देत सदाहीं , जो कोई जाँचे वा फल पाहीं |
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी , क्षमहु नाथ अब चूक हमारी |
शंकर हो संकट के नाशन , मंगल कारण विघ्न विनाशक |
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं , नारद , शारद शीश नवावैं |
नमो नमो जय नमो शिवाय , सुर ब्रह्मादिक पार न पाय |
जो यह पाठ करे मन लाई , ता पर होत है शम्भु सहाई |
ऋनियों जो कोई हो अधिकारी , पाठ केर सो पावरहारी |
पुत्र हीन कर इच्छा कोई , निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई |
पण्डित त्रयोदशी को लावे , ध्यान पूर्वक होम करावे |
त्रयोदशी व्रत करे हमेशा , तन नहीं ताके रहे कलेशा |
धूप दीप नैवेध चढ़ावे , शंकर सम्मुख पाठ सुनावे |
जन्म जन्म के पाप नसावे , अन्तवास शिवपुर में पावे |
सब दुखियों को आस तुम्हारी , जानि सकल दुःख हरहु हमारी |
नित्त नेम पर प्रातः ही , पाठ करो चालीस |
तुम मेरी मनोकामना , पूर्ण करो जगदीश ||
मगसर छठि हेमन्त ऋतु , संवत् चौंसठ जान |
अस्तुति चालीसा शिवहि पूर्ण कीन कल्याण || _________________________________________________________
|| अथ विन्ध्येश्वरी स्तोत्र ||
निशुम्भ शुम्भ गर्जनी प्रचण्ड मुण्ड खण्डनी |
बने रणे प्रकाशिनी भजामि विन्ध्यवासिनी || १ ||
त्रिशूल मुण्ड धारिणी धरा विधात हारिणी |
गृहे गृहे निवासिनी भजामि विन्ध्यवासिनी || २ ||
दरिद्र दुःख हारिणी सुतां विभूति कारिणी |
वियोग शोक हारिणी भजामि विन्ध्यवासिनी || ३ ||
लसत्सुलाल लोचनं लतासनं वरं प्रदं |
कपाल शूलधारिणी भजामि विन्ध्यवासिनी || ४ ||
करौ मुदागदाधरा शिवा शिवः प्रदायिनी |
बरा बरातन शुभा भजामि विन्ध्यवासिनी || ५ ||
अषीन्द्र जामिनि प्रदं त्रिवास्य रूप धारिणी |
जले थले निवासिनी भजामि विन्ध्यवासिनी || ६ ||
विशिष्ठ शिष्ट कारिणी विशाल रूप धारिणी |
महोदरे विलासिनी भजामि विन्ध्यवासिनी || ७ ||
पुरंदरादी सेविता सुरारि वंश खण्डिता |
विशुद्ध बुद्धि कारिणी भजामि विन्ध्यवासिनी || ८ ||
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|| गंगा माता की आरती ||
हर हर गंगे
ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता |
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता || ॐ ||
चंद्र सी ज्योति तुम्हारी, जल निर्मल आता |
शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता || ॐ ||
पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता |
कृपा दृष्टि हो तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता || ॐ ||
एक बार जो प्राणी, शरण तेरी आता |
यम की त्रास मिटाकर, परमगति पाता || ॐ ||
आरति मातु तुम्हारी, जो नर नित गाता |
सेवक वही सहज में, मुक्ति को पाता || ॐ ||
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|| श्री सत्यनारायण जी की आरती ||
ॐ जय लक्ष्मीरमणा, श्री जय लक्ष्मीरमणा |
सत्यनारायण स्वामी जन-पातक-हरणा || जय ||
रत्नजड़ित सिंहासन अद्भुत छवि राजै |
नारद करत निरंजन घंटा ध्वनि बाजै || जय ||
प्रकट भये कलि कारण, द्विजको दरश दियो |
बूढ़े ब्राह्मण बनकर कञ्चन-महल कियो || जय ||
दुर्बल भील कराल, जिन पर कृपा करी |
चन्द्रचूड़ एक राजा, जिनकी विपति हरी || जय ||
वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्ही |
सो फल भोग्यो प्रभुजी, फिर अस्तुति कीन्ही || जय ||
भाव-भक्ति के कारण छिन-छिन रूप धरयो |
श्रद्धा धारण कीनी, तिनको काज सरयो || जय ||
ग्वाल-बाल संग राजा बन में भक्ति करी |
मनवाञ्छित फल दीन्हों दीनदयालु हरी || जय ||
चढ़त प्रसाद सवायो कदलीफल मेवा |
धूप-दीप-तुलसी से राजी सत्यदेवा || जय ||
(सत्य) नारायण जी की आरती जो कोई नर गावै |
तन मन सुख सम्पत्ति मनवाञ्छित फल पावै || जय ||
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|| श्री विश्वकर्मा जी की आरती ||
ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु
ॐ जय श्री विश्वकर्मा, प्रभु जय श्री विश्वकर्मा |
सकल सृष्टि के करता, रक्षक स्तुति धर्मा || ॐ जय ||
आदि सृष्टि मे विधि को, श्रुति उपदेश दिया |
जीव मात्र का जग में, ज्ञान विकास किया || ॐ जय ||
ऋषि अंगीरा ने तप से, शांति नहीं पाई |
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सीधी आई || ॐ जय ||
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना |
संकट मोचन बनकर, दूर दुःखा कीना || ॐ जय ||
जब रथकार दंपति, तुम्हारी टेर करी |
सुनकर दीन प्राथना, विपत सगरी हरी || ॐ जय ||
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे |
त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज, सकल रूप साजे || ॐ जय ||
ध्यान धरे तब पद का, सकल सिद्धि आवे |
मन द्विविधा मिट जावे, अटल शक्ति पावे || ॐ जय ||
श्री विश्वकर्मा की आरती, जो कोई गावे |
भजत गजानांद स्वामी, सुख संपत्ति पावे || ॐ जय ||
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|| रविवार जी की आरती ||
कहूं लगी आरती दास करेंगे,
सकल जगत जाकी जोत विराजे |
सात समुद्र जाके चरणनि बसे,
कहा भयो जल कुंभ भरे हो राम ||
कोटि भानु जाके नख की शोभा,
कहा भयो मन्दिर दीप धरे हो राम ||
भार अठारह राम बलि जाके,
कहा भयो शिर पुष्पधरे हो राम ||
छप्पन भोग जाके प्रतिदिन लागे,
कहा भयो नैवेध धरे हो राम ||
अमित कोटि जाके बाजा बाजें,
कहा भयो झनकार करे हो राम ||
चार वेद जाके मुख की शोभा,
कहा भयो ब्रह्मावेद पढ़े हो राम ||
शिव सनकादिक आदि ब्रह्मादिक,
नारद मुनि जाको ध्यान धरे हो राम ||
हिम मंदार जाके पवन झकोरें,
कहा भयो शिव चंवर ढुरे हो राम ||
लाख चौरासी बन्ध छुड़ाए,
केवल हरियश नामदेव गाए हो राम ||
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|| सूर्यदेव जी की आरती ||
ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान |
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा |
धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान || ॐ जय सूर्य भगवान.. ||
सारथी अरुण हैं प्रभु तुम, श्वेत कमलधारी | तुम चार भुजाधारी ||
अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटि किरण पसारे | तुम हो देव महान || ॐ जय सूर्य भगवान.. ||
ऊषाकाल में जब तुम, उदयाचल आते | सब तब दर्शन पाते ||
फैलाते उजियारा, जागता तब जग सारा | करे सब तब गुणगान || ॐ जय सूर्य भगवान.. ||
संध्या में भुवनेश्वर अस्ताचल जाते | गोधन तब घर आते ||
गोधूलि बेला में, हर घर हर आंगन में | हो तव महिमा गान || ॐ जय सूर्य भगवान.. ||
देव-दनुज नर-नारी, ऋषि-मुनिवर भजते | आदित्य हृदय जपते ||
स्तोत्र ये मंगलकारी, इसकी है रचना न्यारी | दे नव जीवनदान || ॐ जय सूर्य भगवान.. ||
तुम हो त्रिकाल रचयिता, तुम जग के आधार | महिमा तब अपरम्पार ||
प्राणों का सिंचन करके भक्तों को अपने देते | बल, बुद्धि और ज्ञान || ॐ जय सूर्य भगवान.. ||
भूचर जलचर खेचर, सबके हो प्राण तुम्हीं | सब जीवों के प्राण तुम्हीं ||
वेद-पुराण बखाने, धर्म सभी तुम्हें माने | तुम ही सर्वशक्तिमान || ॐ जय सूर्य भगवान.. ||
पूजन करती दिशाएं, पूजे दश दिक्पाल | तुम भुवनों के प्रतिपाल ||
ऋतुएं तुम्हारी दासी, तुम शाश्वत अविनाशी | शुभकारी अंशुमान || ॐ जय सूर्य भगवान.. ||
ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान |
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा |
धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान || ॐ जय सूर्य भगवान.. ||
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|| श्री गोपाल ध्यानम् ||
कस्तूरी तिलकं ललाट पतले वक्षःस्थले कौस्तुभम्,
नासाग्रे वरमोक्तिकं करतले वेणुं करे कंकणम् ||
सर्वाङ्गे हरिचन्दन सुललितं कण्ठे च मुक्तावली,
गोपस्त्रीपरिवेष्ठितों विजयते गोपाल चूड़ामणि ||
ल्लेफुन्दीवरकान्तिमिन्दुवदनं बर्हावतंसप्रियम्,
श्रीवत्सांकमुदारकौस्तुतभधरं पीताम्बरं सुन्दरम् ||
गोपीनां नयनोत्पलार्चिततषुं गोगोपसंघावृत्तम्।
गोविन्दं कलवेणुवादन परं दिव्यांगभूषं भजे ||
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|| श्री राधा-कृष्णजी की आरती ||
ॐ जय श्री राधा जय श्री कृष्ण
श्री राधा कृष्णाय नमः ||
घूम घुमारो घामर सोहे जय श्री राधा
पट पीतांबर मुनि मन मोहे जय श्री कृष्ण |
जुगल प्रेम रस झम झम झमकै
श्री राधा कृष्णाय नमः ||
राधा राधा कृष्ण कन्हैया जय श्री राधा
भव भव सागर पार लगैया जय श्री कृष्ण |
मंगल मूरति मोक्ष करैया
श्री राधा कृष्णाय नमः ||
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|| आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला |
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला |
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली |
लतन में ठाढ़े बनमाली, भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की |
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं |
गगन सों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की |
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा |
स्मरन ते होत मोह भंगा, बसी शिव सीस, जटा के बीच, हरै अध कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की |
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू |
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू, हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की |
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
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|| श्री कृष्ण जी की आरती ||
ॐ जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय श्री कृष्ण हरे,
भक्तन के दुःख सारे पल में दूर करे || ॐ जय ||
परमानन्द मुरारी मोहन गिरधारी,
जय रस रास बिहारी जय जय गिरधारी || ॐ जय ||
कर कंकन कटि सोहत कानन में बाला,
मोर मुकुट पीताम्बर सोहे बनमाला || ॐ जय ||
दीन सुदामा तारे दरिद्रों के दुःख टारे,
गज के फन्द छुड़ाए भव सागर तारे || ॐ जय ||
हिरण्यकश्यप संहारे नरहरि रूप धरे,
पाहन से प्रभु प्रगटे यम के बीच परे || ॐ जय ||
केशी कंस विदारे नल कूबर तारे,
दामोदर छवि सुन्दर भगतन के प्यारे || ॐ जय ||
काली नाग नथैया नटवर छवि सोहे,
फन-फन नाचा करते नागन मन मोहे || ॐ जय ||
राज्य उग्रसेन पाए, माता शोक हरे,
द्रुपद सुता पत राखी, करुणा लाज भरे || ॐ जय ||
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||आरती श्री कृष्ण जी की ||
जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी |
दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी || जय श्री ||
जय गोविन्द दयानिधि, गोवर्धन धारी |
वंशीधर बनवारी, ब्रज जन प्रियकारी || जय श्री ||
गणिका गोध अजामिल गजपति भयहारी |
आरत-आरति हारी, जय मंगल कारी || जय श्री ||
गोपालक गोपेश्वर, द्रौपदी दुखदारी |
शबर-सुता सुखकारी, गौतम-तिय तारी || जय श्री ||
जन प्रहलाद प्रमोदक, नरहरि तनु धारी |
जन मन रंजनकारी, दिति-सुत संहारी || जय श्री ||
टिट्टिभ-सुत सरंक्षक, रक्षक मंझारी |
पाण्डु सुवन शुभकरी, कौरव मद हारी || जय श्री ||
मन्मथ-मन्मथ मोहन, मुरली-रव कारी |
वृन्दाविपिन बिहारी, यमुना तट चारी || जय श्री ||
अध्-बक-बकी उधारक, तृणावर्त तारी |
बिधि-सुरपति मदहारी, कंस मुक्तिकारी || जय श्री ||
शेष, महेश, सरस्वती, गन गावत हारी |
कल कीरति विस्तारी, भक्त भीति हारी || जय श्री ||
‘नारायण’ शरणागत, अति अघ अघहारी |
पद-रज पावनकारी, चाहत चितहारी || जय श्री ||
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|| आरती श्री राधा जी की ||
आरती श्री राधा जी की कीजै | टेक….
कृष्ण संग जो कर निवासा, कृष्ण करे जिन पर विश्वासा |
आरती वृषभानु लली की कीजै || आरती… ||
कृष्णचन्द्र की करी सहाई, मुंह में आनि रूप दिखाई |
उस शक्ति की आरती कीजै || आरती…. ||
नंद पुत्र से प्रीति बढ़ाई, यमुना तट पर रास रचाई |
आरती रास रसाई की कीजै || आरती…. ||
प्रेम राह जिनसे बतलाई, निर्गुण भक्ति नहीं अपनाई |
आरती राधा जी की कीजै || आरती…. ||
दुनिया की जो रक्षा करती, भक्तजनों के दुःख सब हरती |
आरती दुःख हरणीजी की कीजै || आरती…. ||
दुनिया की जो जननी कहावे, निज पुत्रों की धीर बंधावे |
आरती जगत माता की कीजै || आरती…. ||
निज पुत्रों के काज संवारे, रनवीरा के कष्ट निवारे |
आरती विश्वमाता की कीजै || आरती…. ||
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||श्री कृष्ण चालीसा ||
दोहा
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम |
अरुण अधर जनु बिम्ब फल, नयन कमल अभिराम ||
पूर्ण इन्द्र अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज |
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्ण चन्द्र महाराज ||
चौपाई
जय यदुनन्दन जय जगवन्दन, जय वसुदेव देवकी नन्दन |
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे, जय प्रभु भक्तन के दृग तारे |
जय नटनागर नाग नथइया, कृष्ण कन्हैया धेनु चरइया |
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो, आओ दीनन कष्ट निवारो |
बंशी मधुर अधर धरि टेरी, होवे पूर्ण विनय यह मेरी |
आओ हरि पुनि माखन चाखो, आज लाज भारत की राखो |
गोल कपोल चिबुक अरुणारे, मृदु मुस्कान मोहिनी डारे |
रंजित राजिव नयन विशाला, मोर मुकुट बैजन्ती माला |
कुण्डल श्रवण पीतपट आछे, कटि किंकणी काछन काछे |
नील जलज सुन्दर तनु सोहै, छवि लखि सुर नर मुनि मन मोहै |
मस्तक तिलक अलक घुँघुँराले, आओ कृष्ण बांसुरी वाले |
करि पय पान, पूतनहिं तारयो, अका बका कागा सुर मारयो |
मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला, भये शीतल, लखितहिं नन्दलाला |
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई, मूसर धार वारि वर्षाई |
लगत-लगत ब्रज चहन बहायो, गोवर्धन नखधारि बचायो |
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई, मुख महँ चौदह भुवन दिखाई |
दुष्ट कंस अति उधम मचायो, कोटि कमल जब फूल मँगायो |
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें, चरणचिन्ह दे निर्भय कीन्हैं |
करि गोपिन संग रास विलासा, सबकी पूरण करि अभिलाषा |
केतिक महा असुर संहारियो, कंसहि केस पकड़ि दै मारयो |
मात-पिता की बन्दि छुड़ाई, उग्रसेन कहँ राज दिलाई |
महि से मृतक छहों सुत लायो, मातु देवकी शोक मिटायो |
भौमासुर मुर दैत्य संहारी, लाये षट दस सहस कुमारी |
दें भीमहिं तृणचीर संहारा, जरासिंधु राक्षस कहँ मारा |
असुर बकासुर आदिक मारयो, भक्तन के तब कष्ट निवारियो |
दीन सुदामा के दुःख टारयो, तंदुल तीन मुठि मुख डारयो |
प्रेम के साग विदुर घर माँगे, दुर्योधन के मेवा त्यागे |
लखी प्रेमकी महिमा भारी, ऐसे श्याम दीन हितकारी |
मारथ के पारथ रथ हांके, लिए चक्र कर नहिं बल थांके |
निज गीता के ज्ञान सुनाये, भक्तन हृदय सुधा वर्षाये |
मीरा थी ऐसी मतवाली, विष पी गई बजा कर ताली |
राणा भेजा साँप पिटारी, शालिग्राम बने बनवारी |
निज माया तुम विधिहिं दिखायो, उरते संशय सकल मिटायो |
तव शत निन्दा करि तत्काला, जीवन मुक्त भयो शिशुपाला |
जबहिं द्रोपदी टेर लगाई, दीनानाथ लाज अब जाई |
तुरतहि वसन बने नन्दलाला, बढे चीर भये अरि मुँह काला |
अस अनाथ के नाथ कन्हैया, डूबत भँवर बचावत नइया |
सुन्दरदास आस उर धारी, दयादृष्टि कीजै बनवारी |
नाथ सकल मम कुमति निवारो, क्षमहुबेगि अपराध हमारो |
खोलो पट अब दर्शन दीजै, बोलो कृष्ण कन्हैया की जय |
दोहा
यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करे उर धारि |
अष्ट सिद्धि नवनिद्धि फल, लहै पदारथ चरि ||
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गीता सार
- क्यों व्यर्थ चिन्ता करते हो ? किससे व्यर्थ डरते हो ? कौन तुम्हे मार सकता है ? आत्मा न पैदा होता है, न मरता है |
- जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है | जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा | तुम भूत का पश्चाताप न करो | भविष्य की चिन्ता न करो | वर्तमान चल रहा है |
- तुम्हारा क्या गया, जो रोते हो? तुम क्या लाये थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया, यहीं से लिया| जो दिया, यहीं पर दिया | जो लिया इसी (भगवान) से लिया | जो दिया, इसी को दिया | खाली हाथ आए, खाली हाथ चले | जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का है, परसों किसी और का होगा | तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो| बस, यही प्रसन्नता तुम्हारे दुःखों का कारण है |
- परिवर्तन संसार का नियम है | जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है | एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम द्ररिद्र हो जाते हो, मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, विचार से हटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सब के हो |
- न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम इस शरीर के हो | यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा | परंतु आत्मा स्थिर है, फिर तुम क्या हो?
- तुम अपने आपको भगवान के अर्पित करो | यही सबसे उत्तम सहारा है | जो इसके सहारे को जानता है, वह भय, चिंता, शोक से सर्वदा मुक्त है |
- जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल | ऐसा करने से तू सदा जीवन-मुक्त का आनन्द अनुभव करेगा |
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|| आरती जय जगदीश हरे ||
ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु जय जगदीश हरे |
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे || ॐ ||
जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिन से मन का |
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का || ॐ ||
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूॅं किसकी |
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी || ॐ ||
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी |
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी || ॐ ||
तुम करुणा के सागर, तुम पालन कर्त्ता |
मैं मूर्ख खल कामी, कृपा करो भर्ता || ॐ ||
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति |
किस विधि मिलूँ दयामय ! तुमको मैं कुमति || ॐ ||
दीनबन्धु दुःखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे |
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे || ॐ ||
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा |
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा || ॐ ||
तन, मन, धन जो कुछ है, सब ही है तेरा |
तेरा तुझको अर्पित, क्या लागे मेरा || ॐ ||
ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु जय जगदीश हरे |
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे || ॐ ||
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