|| आरती श्री हनुमान जी की ||

आरती कीजै हनुमान लला की | दुष्टदलन रघुनाथ कला की ||
जा के बल से गिरिवर काँपे | रोग दोष जा के निकट न झाँके ||
अंजनी-पुत्र महा बलदाई | संतन के प्रभु सदा सहाई ||
दे बीरा रघुनाथ पठाये | लंका जारि सिया सुधि लाये ||
लंका सो कोट समुद्र सी खाई | जात पवन-सुत बार न लाई ||
लंका जारी असुर संहारे | सीता राम जी के काज सँवारे ||
लक्ष्मण मूर्छित पड़े संहारे | आनि संजीवन प्राण उबारे ||
पैठि पाताल तोरि जम-कारे | अहिरावन की भुजा उखारे ||
बाईं भुजा असुर संहारे | दाईं भुजा सब सन्त उबारे ||
सुर नर मुनिजन आरती उतारें | जय जय जय हनुमान जी उचारें ||
कंचन थार कपूर लौ छाई | आरती करत अंजनी माई ||
जो हनुमान जी की आरती गावै | बसि बैकुंठ परम पद पावै || _________________________________________________________

|| संकटमोचन हनुमानाष्टक ||

बाल समय रवि भझिलियो तब , तीनहुँ लोक भयो अंधियारो |
ताहि सो त्रास भयो जगको , यह संकट काहूसो जात न टारो |
देवन आनि करी विनती तब , छांड़ि दियो रवि कष्ट निवारो |
कोनहिं जानत है जग में कपि , संकट मोचन नाम तिहारो || १ ||

बालि की त्रास कपीस बसै गिरि , जात महाप्रभु पन्थ निहारो |
चौंकि महामुनि श्राप दियो तब , चाहिए कौन विचार विचारो |
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु , सोतुम दासके सोकनिवारो |
कोनहिं जानत है जग में कपि , संकट मोचन नाम तिहारो || २ ||

अंगद के संग लेन गये सिय , खोज कपीस यह बैन उचारो |
जीवत ना बचिहौं हमसों जु , बिना सुधि लाए इहां पग धारो |
हेरि थके तट सिन्धु सबै तब लाय , सिया सुधि प्रान उबारो |
कोनहिं जानत है जग में कपि , संकट मोचन नाम तिहारो || ३ ||

रावन त्रास दई सिय को जब , राक्षसि सों कहि सोक निवारो |
ताहि समय हनुमान महाप्रभु , जाय महा रजनीचर मारो |
चाहत सिय असोकसों आगिसु दै प्रभु मुद्रिका सोकनिवारो |
कोनहिं जानत है जग में कपि , संकट मोचन नाम तिहारो || ४ ||

बान लग्यो उर लछिमन के तब , प्रान तजे सुत रावन मारो |
लै गृह वैध सुषेन समेत , तबै गिरि द्रोन सुबीर उपरो |
आनिसंजीवन हाथदई तब , लछिमनके तुम प्रान उबारो |
कोनहिं जानत है जग में कपि , संकट मोचन नाम तिहारो || ५ ||

रावन युद्ध अजान कियो तब , नाग की फाँस सबै सिर डारो |
श्री रघुनाथ समेत सबै दल , मोह भयो यह संकट भारो |
आनिखगेस तबै हनुमानजु , बंधन काटिसुत्रास निवारो |
कोनहिं जानत है जग में कपि , संकट मोचन नाम तिहारो || ६ ||

बंधु समेत जबै अहिरावन लै रघुनाथ पाताल सिधारो |
देवहि पूजि भली विधि सों बलि , देउ सबै मिलिमंत्र बिचारो |
जाय सहाय भयो तब ही , अहिरावन सैन्य समेत संहारो |
कोनहिं जानत है जग में कपि , संकट मोचन नाम तिहारो || ७ ||

काज किए बड़ देवन के तुम , बीर महा प्रभु देखि विचारो |
कौन सो संकट मोर गरीब को , जो तुमसों नहिं जात है टारो |
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु , जो कुछ संकट होय हमारो |
कोनहिं जानत है जग में कपि , संकट मोचन नाम तिहारो || ८ ||

दोहा — लाल देह लाली लसै , अरु धरि लाल लंगूर |
वज्र देह दानव दलन , जय जय जय कपिसुर || _________________________________________________________

|| श्री बालाजी की आरती || 

ॐ जय हनुमत वीरा, स्वामी जय हनुमत वीरा | 
संकट मोचन स्वामी, तुम हो रणधीरा || ॐ ||  
पवन-पुत्र अंजनी-सुत, महिमा अति भारी | 
दुःख दारिद्रय मिटाओ, संकट छय हारी || ॐ ||  
बाल समय में तुमने, रवि को भक्ष लियो | 
देवन स्तुति कीन्ही, तुरतहिं छोड़ दियो || ॐ ||  
कपि सुग्रीव राम संग, मैत्री करवाई | 
अभिमानी बलि मेट्यो, कीर्ति रही छाई || ॐ ||  
जारि लंक सिय-सुधि ले आए, वानर हर्षाये | 
कारज कठिन सुधारे, रघुबर मन भाये || ॐ ||  
शक्ति लगी लक्ष्मण को, भारी सोच भयो | 
लाय संजीवन बूटी, दुःख सब दूर कियो || ॐ ||  
रामहिं ले अहिरावण, जब पाताल गयो | 
ताहि मारि प्रभु लाये, जय जयकार भयो || ॐ ||  
राजत मेहंदीपुर में, दर्शन सुखकारी | 
मंगल और शनिश्चर, मेला है जारी || ॐ ||  
श्री बालाजी की आरती, जो कोई नर गावे | 
कहत इन्द्र हर्षित, मन वांछित फल पावे || ॐ ||
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|| हनुमान जी की आरती || 

ॐ जय हनुमत बांके, स्वामी जय हनुमत बांके | 
तुम्हारे बल पराक्रम से, रावण दल कांपे || ॐ || 
कटि पर लाल लंगोट विराजे, कर में गदाधरी | 
असुरानंद निरखते, रावण से बलकारी || ॐ || 
सात समुंदर लंघन कीन्हो, बाग विध्वंस कियो | 
माता की सुधि लाये, लंका ध्वंस कियो || ॐ || 
लंका तोड़ी पलंका तोड़ी, रावण गढ़ तोड़े | 
राम जी के काज संवारे, नष्ट करि लंके || ॐ || 
अहिरावण को मारो, धरि देवी रूपा | 
कृपा करो नित मोपे, जय जय सुर भूपा || ॐ || 
हनुमत बलधारी तुम देवन हितकारी | 
निज भक्तन की करते, हो प्रभु रखवारी || ॐ || 
हनुमान वीर जी की आरती, जो कोई नर गावै | 
‘कमलानंद’ कहे सो, बल-बुद्धि पावै || ॐ ||
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|| मंगल वार की पावन आरती ||

मंगल मूरति जय जय हनुमंता, मंगल-मंगल देव अनंता | 
हाथ व्रज और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजे || 

शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जगवंदन | 
लाल लंगोट लाल दोऊ नयना, पर्वत सम फारत है सेना || 

काल अकाल जुद्ध किलकारी, देश उजारत क्रुद्ध अपारी | 
रामदूत अतुलित बलधामा, अंजनि पुत्र पवनसुत नामा || 

महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी | 
भूमि पुत्र कंचन बरसावे, राजपाट पुर देश दिवावे || 

शत्रुन काट-काट महिं डारे, बंधन व्याधि विपत्ति निवारे | 
आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक ते कांपै || 

सब सुख लहै तुम्हारी शरणा, तुम रक्षक काहू को डरना | 
तुम्हरे भजन सकल संसारा, दया करो सुख दृष्टि अपारा || 

रामदण्ड कालहु को दण्डा, तुम्हरे परसि होत जब खण्डा | 
पवन पुत्र धरती के पूता, दोऊ मिल काज करो अवधूता || 

हर प्राणी शरणागत आए, चरण कमल में शीश नवाए | 
रोग शोक बहु विपत्ति घराने, दुःख दरिद्र बंधन प्रकटाने || 

तुम तज और न मेटनहारा, दोऊ तुम हो महावीर अपारा | 
दारिद्र दहन ऋण त्रासा, करो रोग दुःख स्वप्न विनाशा || 

शत्रुन करो चरन के चेरे, तुम स्वामी हम सेवक तेरे | 
विपत्ति हरन मंगल देवा, अंगीकार करो यह सेवा || 

मुद्रित भक्त विनती यह मोरी, देऊ महाधन लाख करोरी | 
श्रीमंगलजी की आरती हनुमत सहितासु गाई | 
होई मनोरथ सिद्ध जब अंत विष्णुपुर जाई || 

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|| श्री बजरंग बाण का पाठ ||

दोहा :

निष्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान | 
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान || 

चौपाई :

जय हनुमंत संत हितकारी | सुन लीजै प्रभु अरज हमारी || 
जन के काज बिलंब न कीजै | आतुर दौरि महा सुख दीजै || 
जैसे कूदि सिंधु महिपारा | सुरसा बदन पैठि बिस्तारा || 
आगे जाय लंकिनी रोका | मारेहु लात गई सुरलोका || 
जाय विभीषन को सुख दीन्हा | सीता निरखि परमपद लीन्हा || 
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा | अति आतुर जमकातर तोरा || 
अक्षय कुमार मारि संहारा | लूम लपेटि लंक को जारा || 
लाह समान लंक जरि गई | जय जय धुनि सुरपुर नभ भई || 
अब बिलंब केहि कारन स्वामी | कृपा करहु उर अंतरयामी || 
जय जय लखन प्रान के दाता | आतुर ह्वै दुःख करहु निपाता || 
जै हनुमान जयति बल-सागर | सुर-समूह-समरथ भट-नागर || 
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले | बैरिहि मारु बज्र की कीले || 
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा | ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा || 
जय अंजनि कुमार बलवंता | शंकरसुवन बीर हनुमंता || 
बदन कराल काल-कुल-घालक | राम सहाय सदा प्रतिपालक || 
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर | अगिन बेताल काल मारी मर ||
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की | राखु नाथ मरजाद नाम की || 
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै | राम दूत धरु मारु धाइ कै || 
जय जय जय हनुमंत अगाधा | दुख पावत जन केहि अपराधा || 
पूजा जप तप नेम अचारा | नहिं जानत कछु दास तुम्हारा || 
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं | तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं || 
जनकसुता हरि दास कहावौ | ताकी सपथ बिलंब न लावौ || 
जै जै जै धुनि होत अकासा | सुमिरत होय दुसह दुख नासा || 
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं | यहि औसर अब केहि गोहरावौं || 
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई | पायँ परौं, कर जोरि मनाई ||
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता | ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता || 
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल | ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल ||
अपने जन को तुरत उबारौ | सुमिरत होय आनंद हमारौ || 
यह बजरंग-बाण जेहि मारै | ताहि कहौ फिरि कवन उबारै || 
पाठ करै बजरंग-बाण की | हनुमत रक्षा करै प्रान की || 
यह बजरंग बाण जो जापैं | तासों भूत-प्रेत सब कापैं || 
धूप देय जो जपै हमेसा | ताके तन नहिं रहै कलेसा || 
दोहा :उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान || 
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान || 

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