शुक्रवार की प्राथना
गायत्री-मंत्र
ॐ भूर्भुवः स्वः |
तत्सवितुवर्रेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ||
हे प्राणस्वरूप, दुःखहर्ता और सर्वव्यापक, आनन्द के देने वाले प्रभो ! जो आप सर्वज्ञ और सकल जगत् के उत्पादक हैं, हम आपके उस पूजनीयतम, पापनाशक स्वरूप तेज का ध्यान करते हैं, जो हमारी बुद्धियों को प्रकाशित करता है | पिता ! आपसे हमारी बुद्धि कदापि विमुख न हो | आप हमारी बुद्धियों में सदैव प्रकाशित रहें और हमारी बुद्धियों को सत्कर्मों में प्रेरित करें, ऐसी प्रार्थना है |
_________________________________________________________
|| गणपति वंदना ||
गुरुर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः|
गुर्रुसाक्षात् परब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नमः ||
प्रणम्य शिरसा देवं, गौरीपुत्रं विनायकम् |
भक्तावासं स्मरे नित्यमायुः कामार्थ सिद्धये ||
वक्रतुण्ड महाकाय कोटि सूर्य समप्रभः |
निर्विघ्नं कुरमे देव सर्वकार्येपु सर्वदा ||
लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रिय |
निर्विघ्नं कुरमे देव सर्वकार्येपु सर्वदा ||
गजाननं भूतगणाधि सेवितं, कपित्थ जम्वूफलचारु भक्षणम् |
उमासुतं शोकविनाशकारक, नमामिविघ्ननेश्वरपादपङ्कजम् ||
सर्व विघ्न विनाशाय, सर्व कल्याण हेतवे |
पार्वती प्रिय पुत्राय, श्री गणेशाय नमोनमः ||
_________________________________________________________
|| आरती श्री गणेश जी की ||
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा |
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ||
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा |
लड्डुअन का भोग लगे, संत करे सेवा || जय ||
एक दन्त दयावन्त, चार भुजा धारी |
मस्तक सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी || जय ||
अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया |
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया || जय ||
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा |
शूरश्याम शरण में आये सुफल कीजे सेवा || जय ||
दीनन की लाज राखो, शंभू सूत वारी |
कामना को पूरी करो जग बलिहारी || जय ||
_________________________________________________________
|| आरती श्री लक्ष्मी जी की ||
ॐ जय लक्ष्मी माता, (मैया) जय लक्ष्मी माता |
तुमको निशिदिन सेवत, हर विष्णु धाता || ॐ ||
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता |
सूर्य – चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता || ॐ ||
दुर्गारूप निरंजनि, सुख -सम्पति दाता |
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋधि-सिधि-पाता || ॐ ||
तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभ दाता |
कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता || ॐ ||
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता |
सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता || ॐ ||
तुम बिन यज्ञ न होते, व्रत न कोई पाता |
खान पान का वैभव सब तुमसे आता || ॐ ||
शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि जाता |
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पाता || ॐ ||
महालक्ष्मी (जी) की आरती, जो कोई नर गाता |
उर आनंद समाता पाप उतर जाता || ॐ ||
_________________________________________________________
|| गौरी नमः ||
हेमान्द्रितनयां देवा वरदां शंकरं प्रियाम्लम्बोदरस्य जननीं गौरीमावाहयाम्यहम्ओउम् अम्बे अम्बिके अम्बालिके न मानयतिकश्चम्ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम् ||
_________________________________________________________
|| आरती श्री अम्बेजी की ||
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली |
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||
तेरे भक्त जनों पर मैय्या पीर पड़ी है भारी |
दानव दल पर टूट पड़ो माँ करके सिहं सवारी ||
सौ सौ सिंहों से बलशाली है दस भुजा वाली |
दुखियों के दुखड़े निवारती || ओ मैया.. ||
माँ बेटे का है इस दुनिया में बड़ा ही निर्मल नाता |
पूत कपूत सुने हैं पर ना माता सुनी कुमाता ||
सब पर करूणा दर्शाने वाली, अमृत बरसाने वाली |
दुखियों के दुखड़े निवारती || ओ मैया.. ||
नहीं मांगते धन और दौलत और न चाँद न सोना |
हम तो मांगे माँ तेरे मन में एक छोटा सा कोना ||
सबकी बिगड़ी बनाने वाली लाज बचाने वाली |
सतियों के सत को संवारती || ओ मैया.. ||
_________________________________________________________
|| आरती श्री अम्बेजी की ||
जय अम्बे गौरी मैया, जय श्यामा गौरी |
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिव जी || जय अम्बे.. ||
माँग सिन्दूर विराजत टीको मृगमद को |
उज्जवलसे दोउ नैना, चन्द्रबदन नीको || जय अम्बे ||
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजे |
रक्त -पुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै || जय अम्बे ||
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी |
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुःखहारी || जय अम्बे ||
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती |
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति || जय अम्बे ||
शुम्भ निशुम्भ विदारे, महिषासुर-घाती |
धूम्रविलोचन नैना निशिदिन मदमाती || जय अम्बे ||
चण्ड मुण्ड संहारे, शोणितबीज हरे |
मधु कैटभ दौउ मारे, सुर भयहीन करे || जय अम्बे ||
ब्राह्मणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी |
आगम -निगम -बखानी, तुम शिव पटरानी || जय अम्बे ||
चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरों |
बाजत ताल मृदंगा, और बाजत डमरू || जय अम्बे ||
तुम हो जगकी माता, तुम ही हो भरता |
भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पति करता || जय अम्बे ||
भुजा चारि अति शोभत, वर-मुद्रा धारी |
मनवांछित फल पावत, सेवत नर -नारी || जय अम्बे ||
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती |
( श्री ) माल केतुमें राजत कोटिरतन ज्योति || जय अम्बे ||
( श्री ) अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै |
कहत शिवानँद स्वामी, सुख-सम्पति पावै || जय अम्बे ||
_________________________________________________________
|| आरती श्री काली मैया की ||
मंगल की सेवा सुन मेरी देवी, हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े
पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट करें |
सुन जगदम्बे कर न विलम्बे, सन्तन के भंडार भरे
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ||
बुद्धि विधाता तू जगमाता, मेरा कारज सिद्ध करे
चरण कमल का लिया आसरा, शरण तुम्हारी आन परे |
जब जब पीर पड़े भक्तन पर, तब तब आये सहाय करे
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ||
बार बार तै सब जग मोहयो, तरुणी रूप अनूप धरे
माता होकर पुत्र खिलावें, कहीं भार्या बन भोग करे |
संतन सुखदायी, सदा सहाई, सन्त खड़े जयकार करें
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ||
ब्रह्मा, विष्णु, महेश फल लिए, भेंट देन सब द्वार खड़े
अटल सिंहासन बैठी माता, सिर सोने का छत्र धरे |
वार शनिचर कुंकुमवरणी, जब लुंकुड पर हुक्म करे
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ||
खड्ग खप्पर त्रिशूल हाथ लिये, रक्तबीज कुं भस्म करे
शुम्भ-निशुम्भ क्षणहिं में मारे, महिषासुर को पकड़ धरे |
आदित वारी आदि भवानी, जन अपने को कष्ट हरे
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ||
कुपित होय कर दानव मारे, चण्ड-मुण्ड सब चूर करे
जब तुम देखो दया रूप हो, पल में संकट दूर टरे |
सोम्य स्वभाव धरयो मेरी माता, जन की अर्ज कबूल करे
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ||
सात बार महिमा बरनी, सब गुण कौन बखान करे
सिंह पीठ पर चढ़ी भवानी, अटल भुवन मे राज करे |
दर्शन पावें मंगल गावें, सिद्ध साधन तेरी भेट धरें
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ||
ब्रह्मा वेद पढ़े तेरे द्वारे, शिवशंकर हरि ध्यान धरे
इन्द्र-कृष्ण तेरी करे आरती, चंवर कुबेर डुलाय रहे |
जय जननी जय मातुभवानी, अचल भुवन में राज करे
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ||
_________________________________________________________
|| सीता माता की पवित्र आरती ||
आरती श्रीजनक-दुलारी की | सीताजी रघुबर-प्यारी की ||
जगत-जननि जगकी विस्तारिणि, नित्य सत्य साकेत विहारिणि |
परम् दयामयि दीनोद्धारिणि, मैया भक्तन-हितकारी की ||
आरती श्री जनक-दुलारी की | सीताजी रघुबर-प्यारी की ||
सतिशिरोमणि पति-हित-कारिणि, पति-सेवा-हित-वन-वन-चारिणि |
पति-हित-पति-वियोग-स्वीकारिणि, त्याग-धर्म-मूरति-धारी की ||
आरती श्री जनक-दुलारी की | सीताजी रघुबर-प्यारी की ||
विमल-कीर्ति सब लोकन छाई, नाम लेत पावन मति आई |
सुमिरत कटत कष्ट दुखदायी, शरणागत-जन-भय-हारी की ||
आरती श्री जनक-दुलारी की | सीताजी रघुबर-प्यारी की ||
_________________________________________________________
|| आरती श्री राधा जी की ||
आरती श्री राधा जी की कीजै | टेक….
कृष्ण संग जो कर निवासा, कृष्ण करे जिन पर विश्वासा |
आरती वृषभानु लली की कीजै || आरती… ||
कृष्णचन्द्र की करी सहाई, मुंह में आनि रूप दिखाई |
उस शक्ति की आरती कीजै || आरती…. ||
नंद पुत्र से प्रीति बढ़ाई, यमुना तट पर रास रचाई |
आरती रास रसाई की कीजै || आरती…. ||
प्रेम राह जिनसे बतलाई, निर्गुण भक्ति नहीं अपनाई |
आरती राधा जी की कीजै || आरती…. ||
दुनिया की जो रक्षा करती, भक्तजनों के दुःख सब हरती |
आरती दुःख हरणीजी की कीजै || आरती…. ||
दुनिया की जो जननी कहावे, निज पुत्रों की धीर बंधावे |
आरती जगत माता की कीजै || आरती…. ||
निज पुत्रों के काज संवारे, रनवीरा के कष्ट निवारे |
आरती विश्वमाता की कीजै || आरती…. ||
_________________________________________________________
|| माँ सरस्वती वन्दन ||
शुक्लां ब्रह्म विचार सार परमामाघां जगदव्यापिनीम् |
वीणापुस्तकधारिणीं भयदां जाड्यान्धकारापहाम् ||
हस्तेस्फ टिकमालिकां विदधतीं पद्माशने संस्थिताम् |
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ||
सरस्वति महाभागे विधे कमल लोचने |
विद्यारुपे विशालाक्षे विधां देहि नमोअ्स्तुते ||
_________________________________________________________
|| माँ सरस्वती ध्यान मंत्र ||
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्र्वेतपद्मासना |
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता सा माँ पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ||
_________________________________________________________
|| आरती जय सरस्वती माता की ||
ॐ जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता |
सद्गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता || ॐ जय ||
चंद्रवदनि पद्मासिनी, ध्रुति मंगलकारी |
सोहें शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी || ॐ जय ||
बाएं कर में वीणा, दाएं कर में माला |
शीश मुकुट मणी सोहें, गल मोतियन माला || ॐ जय ||
देवी शरण जो आएं, उनका उद्धार किया |
पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया || ॐ जय ||
विद्या ज्ञान प्रदायिनी, ज्ञान प्रकाश भरो |
मोह, अज्ञान, तिमिर का जग से नाश करो || ॐ जय ||
धूप, दीप, फल, मेवा माँ स्वीकार करो |
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो || ॐ जय ||
माँ सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावें |
हितकारी, सुखकारी, ज्ञान भक्ति पावें || ॐ जय ||
ॐ जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता |
सद्गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता ||
_________________________________________________________
|| गंगा माता की आरती ||
हर हर गंगे
ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता |
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता || ॐ ||
चंद्र सी ज्योति तुम्हारी, जल निर्मल आता |
शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता || ॐ ||
पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता |
कृपा दृष्टि हो तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता || ॐ ||
एक बार जो प्राणी, शरण तेरी आता |
यम की त्रास मिटाकर, परमगति पाता || ॐ ||
आरति मातु तुम्हारी, जो नर नित गाता |
सेवक वही सहज में, मुक्ति को पाता || ॐ ||
_________________________________________________________
|| श्री मनसा देवी की आरती ||
ॐ जय मनसा माता, श्री जय मनसा माता |
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता || ॐ ||
जरत्कारु मुनि पत्नी, तुम बासुक भगिनी |
कश्यप की तुम कन्या, आस्तिक की माता || ॐ ||
सुरनर मुनिगण ध्यावत, सेवत नर नारी |
गर्व धन्वन्तरी नाशिनी, हंस वाहिनी देवी || ॐ ||
पर्वतवासिनी संकट नाशिनी, अक्षय धन दात्री |
पुत्र पौत्रादि प्रदायिनी माता, मनवांछित फल दाता || ॐ ||
मनसा जी की आरती, जो कोई नर गाता |
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पाता || ॐ ||
_________________________________________________________
|| श्री मनसा देवी जी की आरती ||
माँ मनसा रानी, माँ मनसा रानी
आये तुम्हारी शरण भवानी || माँ ||
सुखों का वर दो अब वरदानी || माँ ||
सारी ही सृष्टि आपकी माया
धूप है कहीं पर कहीं पे छाया || सारी ||
कुंदन हमारी ठीक करदो काया
माँ मनसा रानी माँ मनसा रानी || माँ ||
करुणा की मूरत हे आदि शक्ति
भव सिन्धु तारक तेरी है भक्ति || करुणा ||
कष्टों से मुक्ति की देदो युक्ति
माँ मनसा रानी माँ मनसा रानी || माँ ||
सर्व कलाओं वाली हे मैया
कलियों सी कर दो काटों की सैया || सर्व ||
बन के खेवैया तारो ये नैया
माँ मनसा रानी माँ मनसा रानी || माँ ||
संकट हरनी माँ भवनों वाली
सभी सवाली न जाते खाली || संकट ||
दुर्लभ है हमको बना बलशाली
माँ मनसा रानी माँ मनसा रानी || माँ ||
पग पग बिचलित हम हैं सम्भालो
बिष की खाइयों से माँ आ निकालो || पग ||
चरणों से अब तो हमको लगा लो
माँ मनसा रानी माँ मनसा रानी || माँ ||
सोये हुए ये भाग्य जगा दो
अन्धकार हर लो उजियारा ला दो || सोये ||
निर्दोष निरबैर निर्मल बना दो
माँ मनसा रानी माँ मनसा रानी || माँ ||
सुखों का वर दो अब वरदानी
माँ मनसा रानी माँ मनसा रानी || माँ ||
माँ मनसा रानी माँ मनसा रानी || माँ ||
_________________________________________________________
|| संतोषी माता जी की आरती ||
ॐ जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता |
अपने सेवक जन को, सुख संपत्ति दाता ||
ॐ जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ||
जय सुंदर, चीर सुनहरी, माँ धारण कीन्हो |
हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हो ||
ॐ जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ||
जय गेरू लाल छटा छवि, बदन कमल सोहे |
मंद हँसत करुणामयी, त्रिभुवन जन मोहे ||
ॐ जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ||
जय स्वर्ण सिंहासन बैठी, चंवर दुरे प्यारे |
धूप, दीप, मधुमेवा, भोग धरें न्यारे ||
ॐ जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ||
जय गुड़ अरु चना परमप्रिय, तामे संतोष कियो |
संतोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो ||
ॐ जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ||
जय शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही |
भक्त मण्डली छाई, कथा सुनत मोही ||
ॐ जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ||
जय मंदिर जगमत ज्योति,मंगल ध्वनि छाई |
विनय करें हम बालक, चरनन सिर नाई ||
ॐ जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ||
जय भक्ति भावमय पूजा, अंगीकृत कीजै |
जो मन बसे हमारे, इच्छा फल दीजै ||
ॐ जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ||
जय दुखी, दारिद्री, रोगी, संकट मुक्त किए |
बहु धनधान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए ||
ॐ जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ||
जय ध्यान धर्यो जिस जन ने, मनवांछित फल पायो |
पूजा कथा श्रवण कर, घर आनंद आयो ||
ॐ जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ||
जय शरण गहे की लज्जा , राखियो जगदम्बे |
संकट तू ही निवारे, दयामयी अम्बे ||
ॐ जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ||
जय संतोषी माँ की आरती, जो कोई नर गावे |
ऋद्धि सिद्धि सुख संपत्ति, जी भरकर पावे ||
ॐ जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ||
_________________________________________________________
|| श्री गायत्री माता की आरती ||
जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता |
सत् मार्ग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता || जयति ||
आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जगपालक कर्त्री |
दुःख शोक, भय, क्लेश कलश, दारिद्र दैन्य हत्री || जयति ||
ब्रह्म रूपिणी, प्रणात पालिन जगत धातृ अम्बे |
भव भयहारी, जन-हितकारी, सुखदा जगदम्बे || जयति ||
भय हारिणी, भवतारिणी, अनघेअज आनन्द राशि |
अविकारी, अखहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी || जयति ||
कामधेनु सतचित आनंद जय गंगा गीता |
सविता की शाश्वती, शक्ति तुम सावित्री सीता || जयति ||
ऋग, यजु साम, अथर्व प्रणयनी, प्रणव महामहिमे |
कुण्डलिनी सहस्त्र सुषुमन शोभा गुण गरिमे || जयति ||
स्वाहा, स्वधा, शची ब्रह्माणी राधा रुद्राणी |
जय सतरूपा, वाणी, विद्या, कमला कल्याणी || जयति ||
जननी हम हैं दिन-हीन, दुःख-दरिद्र के घेरे |
यद्पि कुटिल, कपटी कपूत तउ बालक हैं तेरे || जयति ||
स्नेहसनी करुणामय माता चरण शरण दीजै |
विलख रहे हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै || जयति ||
काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये |
शुद्घ बुद्धि निष्पाप हृदय मन को पवित्र करिये || जयति ||
जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता |
सत् मार्ग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता || जयति ||
_________________________________________________________
|| देवी के १०८ नाम ||
१. ॐ सती | २. साध्वी | ३. भवप्रीता | ४. भवानी |
५. भवमोचनी | ६. आर्या | ७. दुर्गा | ८. जया |
९. आघा | १०. त्रिनेत्रा | ११. शूलधारिणी | १२. पिनाकधारिणी |
१३. चित्रा | १४. चण्डघण्टा | १५. महातपाः | १६. मनः |
१७. बुद्धिः | १८. अहंकारा | १९. चित्तरूपा | २०. चिता |
२१. चितिः | २२. सर्वमंत्रमयी | २३. सत्ता | २४. सत्यानन्द स्वरूपिणी |
२५. अनन्ता | २६. भाविनी | २७. भाव्या | २८. भव्या |
२९. अभव्या | ३०. सदागतिः | ३१. शाम्भवी | ३२. देवमाता |
३३. चिन्ता | ३४. रत्नप्रिया | ३५. सर्वविघा | ३६. दक्षकन्या |
३७. दक्षयज्ञविनाशिनी | ३८. अपर्णा | ३९. अनेकवर्णा | ४०. पाटला |
४१. पाटलावती | ४२. पट्टाम्बर परीधाना | ४३. कलमंजीररंजिनी | ४४. अमेय-विक्रमा |
४५. क्रूरा | ४६. सुन्दरी | ४७. सुरसुन्दरी | ४८. वनदुर्गा |
४९. मातंगी | ५०. मतंगमुनिपूजिता | ५१. ब्रह्मी | ५२. माहेश्वरी |
५३. ऐन्द्री | ५४. कौमारी | ५५. वैष्णवी | ५६. चामुण्डा |
५७. वाराही | ५८. लक्ष्मीः | ५९. पुरुषाकृतिः | ६०. विमला |
६१. उत्कर्षिणी | ६२. ज्ञाना | ६३. क्रिया | ६४. नित्या |
६५. बुद्धिदा | ६६. बहुला | ६७. बहुल-प्रेमा | ६८. सर्ववाहन-वाहना |
६९. निशुम्भशुम्भहननी | ७०. महिषासुरमर्दिनी | ७१. मधुकैटभहंत्री | ७२. चण्डमुण्ड-विनाशिनी |
७३. सर्वासुर-विनाशा | ७४. सर्वदानवघातिनी | ७५. सर्वशास्त्रमयी | ७६. सत्या |
७७. सर्वस्त्रधारिणी | ७८. अनेकशस्त्रहस्ता | ७९. अनेकाशस्त्रधारिणी | ८०. कुमारी |
८१. एककन्या | ८२. कैशोरी | ८३. युवती | ८४. यतिः |
८५. अप्रौढा | ८६. प्रौढा | ८७. वृद्धमाता | ८८. बलप्रदा |
८९. महोदरी | ९०. मुक्तकेशी | ९१. घोररूपा | ९२. महाबला |
९३. अग्निज्वाला | ९४. रौद्रमुखी | ९५. कालरात्रिः | ९६. तपस्विनी |
९७. नारायणी | ९८. भद्रकाली | ९९. विष्णुमाया | १००. जलोदरी |
१०१. शिवदूती | १०२. कराली | १०३. अनन्ता | १०४. परमेश्वरी |
१०५. कात्यायनी | १०६. सावित्री | १०७. प्रत्यक्षा | १०८. ब्रह्मवादिनी |
|| श्री दुर्गा चालीसा ||
नमो नमो दुर्गे सुख करनी | नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ||
निरंकार है ज्योति तुम्हारी | तिहूँ लोक फैली उजियारी ||
शशि ललाट मुख महा विशाला | नेत्र लाल भृकुटि विकराला ||
रूप मातु को अधिक सुहावै | दर्शन करत जन अति सुख पावे ||
तुम संसारि शक्ति लौ कीना | पालन हेतु अन्न धन दीना ||
अन्न पूरना हुई जगपाला | तुमही आदि सुन्दरी बाला ||
प्रलय काल सब नाशन हारी | तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ||
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें | ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ||
धरो रूप नरसिंह को अम्बा | परगट भई फाड़ के खम्बा ||
रक्षा कर प्रहलाद बचायो | हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ||
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं | श्रीनारायण अंग समाहीं ||
क्षीरसिन्धु में करत विलासा | दयासिन्धु दीजै मन आसा ||
हिंगलाज में तुम्ही भवानी | महिमा अमित न जात बखानी ||
मातंगी धूमावति माता | भूवनेश्वरि बगला सुखदाता ||
श्री भैरव तारा जग तारिणि | छन्न माल भव दुःख निवारिणि ||
केहरि वाहन सोह भवानी | लंगुर वीर चलत अगवानी ||
कर में खप्पर खंग विराजे | ताको देखि काल डर भाजे ||
सोहै अस्त्र और त्रिशूला | जागे उठत शत्रु हिय शूला ||
नाभि कोटि में तुम्हीं विराजत | तिहूँ लोक में डंका बाजत ||
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे | रक्तबीज संखन संहारे ||
महिषासुर नृप अति अभिमानी | जेहि अघ भार मही अकुलानी ||
रूप कराल काली का धारा | सेन सहित तुम तिहि संहारा ||
परी गाढ़ संतन पर जब जब | भई सहाय मातु तुम तब तब ||
आभापुर अरु बासव लोका | तब महिमा सब कहैं अशोका ||
ज्वाला ते है ज्योति तुम्हारी | तुम्हें सदा पूजे नरनारी ||
प्रेम भक्ति से जो जब गावें | दुख दरिद्र निकट नहिं आवैं ||
ध्यावैं तुम्हें जो नर मन लाई | जन्म मरण ते सो छुटि जाई ||
जोगी सुर नर कहत पुकारी | योग न होइ बिन शक्ति तुम्हारी ||
शंकर ने अचरज जप कीनो | काम क्रोध जीति सब लीनो ||
निशि दिन ध्यान धरो शंकर ने | काहु काल नहिं सुमरो तुमको ||
शक्ति रूप का करम न पायो | शक्ति गई तब मन पछितायो ||
शरणागत हुई कीर्ति बखानी | जै जै जै जगदम्बे भवानी ||
करी कृपा है मातु दयाला | ऋद्धि सिद्धि दै करहु निहाला ||
जब लगि जियों सदा फल पाऊँ | तुम्हारो जस मैं सदा सुनाऊँ ||
दुर्गा चालीसा जो कोई गावैं | सब सुख भोग परम पद पावै ||
देवीदास शरण निज जानी | करहु कृपा जगदम्ब भवानी || _________________________________________________________
|| आरती जय जगदीश हरे ||
ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु जय जगदीश हरे |
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे || ॐ ||
जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिन से मन का |
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का || ॐ ||
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूॅं किसकी |
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी || ॐ ||
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी |
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी || ॐ ||
तुम करुणा के सागर, तुम पालन कर्त्ता |
मैं मूर्ख खल कामी, कृपा करो भर्ता || ॐ ||
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति |
किस विधि मिलूँ दयामय ! तुमको मैं कुमति || ॐ ||
दीनबन्धु दुःखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे |
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे || ॐ ||
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा |
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा || ॐ ||
तन, मन, धन जो कुछ है, सब ही है तेरा |
तेरा तुझको अर्पित, क्या लागे मेरा || ॐ ||
ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु जय जगदीश हरे |
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे || ॐ ||
_________________________________________________________