गायत्री-मंत्र
ॐ भूर्भुवः स्वः |
तत्सवितुवर्रेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ||
हे प्राणस्वरूप, दुःखहर्ता और सर्वव्यापक, आनन्द के देने वाले प्रभो ! जो आप सर्वज्ञ और सकल जगत् के उत्पादक हैं, हम आपके उस पूजनीयतम, पापनाशक स्वरूप तेज का ध्यान करते हैं, जो हमारी बुद्धियों को प्रकाशित करता है | पिता ! आपसे हमारी बुद्धि कदापि विमुख न हो | आप हमारी बुद्धियों में सदैव प्रकाशित रहें और हमारी बुद्धियों को सत्कर्मों में प्रेरित करें, ऐसी प्रार्थना है |
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|| गणपति वंदना ||
गुरुर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः|
गुर्रुसाक्षात् परब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नमः ||
प्रणम्य शिरसा देवं, गौरीपुत्रं विनायकम् |
भक्तावासं स्मरे नित्यमायुः कामार्थ सिद्धये ||
वक्रतुण्ड महाकाय कोटि सूर्य समप्रभः |
निर्विघ्नं कुरमे देव सर्वकार्येपु सर्वदा ||
लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रिय |
निर्विघ्नं कुरमे देव सर्वकार्येपु सर्वदा ||
गजाननं भूतगणाधि सेवितं, कपित्थ जम्वूफलचारु भक्षणम् |
उमासुतं शोकविनाशकारक, नमामिविघ्ननेश्वरपादपङ्कजम् ||
सर्व विघ्न विनाशाय, सर्व कल्याण हेतवे |
पार्वती प्रिय पुत्राय, श्री गणेशाय नमोनमः ||
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|| आरती श्री गणेश जी की ||
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा |
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ||
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा |
लड्डुअन का भोग लगे, संत करे सेवा || जय ||
एक दन्त दयावन्त, चार भुजा धारी |
मस्तक सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी || जय ||
अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया |
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया || जय ||
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा |
शूरश्याम शरण में आये सुफल कीजे सेवा || जय ||
दीनन की लाज राखो, शंभू सूत वारी |
कामना को पूरी करो जग बलिहारी || जय ||
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|| श्री गणेश आरती – सुखकर्ता दुखहर्ता – जय देव, जय मंगलमुर्ती ||
सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची |
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची ||
सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची |
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची ||
सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची |
कंठी झळके माळ मुक्ताफळांची ।।
जय देव, जय देव
जय देव, जय देव,
जय मंगलमूर्ती, हो श्री मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मन कामनापूर्ती
जय देव, जय देव
रत्नखचित फरा तूज गौरीकुमरा ।
चंदनाची उटी कुंकुम केशरा ।
हिरेजडित मुकुट शोभतो बरा ।
रुणझुणती नूपुरे चरणी घागरीया ।।
जय देव, जय देव
जय देव, जय देव,
जय मंगलमूर्ती, हो श्री मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मन कामनापूर्ती
जय देव, जय देव
लंबोदर पीतांबर फणीवर बंधना ।
सरळ सोंड वक्रतुण्ड त्रिनयना ।
दास रामाचा वाट पाहे सदना ।
संकटी पावावें, निर्वाणी रक्षावे, सुरवरवंदना ।।
जय देव, जय देव
जय देव, जय देव,
जय मंगलमूर्ती, हो श्री मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मन कामनापूर्ती
जय देव, जय देव
घालीन लोटांगण, वंदिन चरण ।
डोळ्यांनी पाहिन रूप तुझे ।
प्रेमे आलिंगीन आनंदे पुजिन ।
भावें ओवाळिन म्हणे नामा ।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विधा द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्व मम देवदेव ।।
कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा,
बुद्धात्मना वा प्रकृतिस्वभावात् ।
करोमि यद्यत् सकलं परस्मै
नारायणायेति समर्पयामि ।।
अच्युतं केशवं रामनारायणं
कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरि ।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं,
जानकीनायकं रामचंद्रं भजे ||
हरे राम हरे राम,
राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण,
कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।
हरे राम हरे राम,
राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण,
कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।
सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची |
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची ||
जय देव, जय देव
जय देव, जय देव,
जय मंगलमूर्ती, हो श्री मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मन कामनापूर्ती
जय देव, जय देव
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|| आरती श्री लक्ष्मी जी की ||
ॐ जय लक्ष्मी माता, (मैया) जय लक्ष्मी माता |
तुमको निशिदिन सेवत, हर विष्णु धाता || ॐ ||
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता |
सूर्य – चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता || ॐ ||
दुर्गारूप निरंजनि, सुख -सम्पति दाता |
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋधि-सिधि-पाता || ॐ ||
तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभ दाता |
कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता || ॐ ||
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता |
सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता || ॐ ||
तुम बिन यज्ञ न होते, व्रत न कोई पाता |
खान पान का वैभव सब तुमसे आता || ॐ ||
शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि जाता |
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पाता || ॐ ||
महालक्ष्मी (जी) की आरती, जो कोई नर गाता |
उर आनंद समाता पाप उतर जाता || ॐ ||
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|| गौरी नमः ||
हेमान्द्रितनयां देवा वरदां शंकरं प्रियाम्लम्बोदरस्य जननीं गौरीमावाहयाम्यहम्ओउम् अम्बे अम्बिके अम्बालिके न मानयतिकश्चम्ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम् ||
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|| आरती श्री अम्बेजी की ||
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली |
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ||
तेरे भक्त जनों पर मैय्या पीर पड़ी है भारी |
दानव दल पर टूट पड़ो माँ करके सिहं सवारी ||
सौ सौ सिंहों से बलशाली है दस भुजा वाली |
दुखियों के दुखड़े निवारती || ओ मैया.. ||
माँ बेटे का है इस दुनिया में बड़ा ही निर्मल नाता |
पूत कपूत सुने हैं पर ना माता सुनी कुमाता ||
सब पर करूणा दर्शाने वाली, अमृत बरसाने वाली |
दुखियों के दुखड़े निवारती || ओ मैया.. ||
नहीं मांगते धन और दौलत और न चाँद न सोना |
हम तो मांगे माँ तेरे मन में एक छोटा सा कोना ||
सबकी बिगड़ी बनाने वाली लाज बचाने वाली |
सतियों के सत को संवारती || ओ मैया.. ||
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|| आरती श्री अम्बेजी की ||
जय अम्बे गौरी मैया, जय श्यामा गौरी |
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिव जी || जय अम्बे.. ||
माँग सिन्दूर विराजत टीको मृगमद को |
उज्जवलसे दोउ नैना, चन्द्रबदन नीको || जय अम्बे ||
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजे |
रक्त -पुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै || जय अम्बे ||
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी |
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुःखहारी || जय अम्बे ||
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती |
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति || जय अम्बे ||
शुम्भ निशुम्भ विदारे, महिषासुर-घाती |
धूम्रविलोचन नैना निशिदिन मदमाती || जय अम्बे ||
चण्ड मुण्ड संहारे, शोणितबीज हरे |
मधु कैटभ दौउ मारे, सुर भयहीन करे || जय अम्बे ||
ब्राह्मणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी |
आगम -निगम -बखानी, तुम शिव पटरानी || जय अम्बे ||
चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरों |
बाजत ताल मृदंगा, और बाजत डमरू || जय अम्बे ||
तुम हो जगकी माता, तुम ही हो भरता |
भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पति करता || जय अम्बे ||
भुजा चारि अति शोभत, वर-मुद्रा धारी |
मनवांछित फल पावत, सेवत नर -नारी || जय अम्बे ||
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती |
( श्री ) माल केतुमें राजत कोटिरतन ज्योति || जय अम्बे ||
( श्री ) अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै |
कहत शिवानँद स्वामी, सुख-सम्पति पावै || जय अम्बे ||
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|| आरती श्री काली मैया की ||
मंगल की सेवा सुन मेरी देवी, हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े
पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट करें |
सुन जगदम्बे कर न विलम्बे, सन्तन के भंडार भरे
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ||
बुद्धि विधाता तू जगमाता, मेरा कारज सिद्ध करे
चरण कमल का लिया आसरा, शरण तुम्हारी आन परे |
जब जब पीर पड़े भक्तन पर, तब तब आये सहाय करे
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ||
बार बार तै सब जग मोहयो, तरुणी रूप अनूप धरे
माता होकर पुत्र खिलावें, कहीं भार्या बन भोग करे |
संतन सुखदायी, सदा सहाई, सन्त खड़े जयकार करें
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ||
ब्रह्मा, विष्णु, महेश फल लिए, भेंट देन सब द्वार खड़े
अटल सिंहासन बैठी माता, सिर सोने का छत्र धरे |
वार शनिचर कुंकुमवरणी, जब लुंकुड पर हुक्म करे
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ||
खड्ग खप्पर त्रिशूल हाथ लिये, रक्तबीज कुं भस्म करे
शुम्भ-निशुम्भ क्षणहिं में मारे, महिषासुर को पकड़ धरे |
आदित वारी आदि भवानी, जन अपने को कष्ट हरे
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ||
कुपित होय कर दानव मारे, चण्ड-मुण्ड सब चूर करे
जब तुम देखो दया रूप हो, पल में संकट दूर टरे |
सोम्य स्वभाव धरयो मेरी माता, जन की अर्ज कबूल करे
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ||
सात बार महिमा बरनी, सब गुण कौन बखान करे
सिंह पीठ पर चढ़ी भवानी, अटल भुवन मे राज करे |
दर्शन पावें मंगल गावें, सिद्ध साधन तेरी भेट धरें
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ||
ब्रह्मा वेद पढ़े तेरे द्वारे, शिवशंकर हरि ध्यान धरे
इन्द्र-कृष्ण तेरी करे आरती, चंवर कुबेर डुलाय रहे |
जय जननी जय मातुभवानी, अचल भुवन में राज करे
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ||
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|| आरती जय जगदीश हरे ||
ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु जय जगदीश हरे |
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे || ॐ ||
जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिन से मन का |
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का || ॐ ||
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूॅं किसकी |
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी || ॐ ||
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी |
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी || ॐ ||
तुम करुणा के सागर, तुम पालन कर्त्ता |
मैं मूर्ख खल कामी, कृपा करो भर्ता || ॐ ||
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति |
किस विधि मिलूँ दयामय ! तुमको मैं कुमति || ॐ ||
दीनबन्धु दुःखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे |
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे || ॐ ||
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा |
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा || ॐ ||
तन, मन, धन जो कुछ है, सब ही है तेरा |
तेरा तुझको अर्पित, क्या लागे मेरा || ॐ ||
ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु जय जगदीश हरे |
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे || ॐ ||
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