||श्री कृष्ण चालीसा ||
दोहा
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम |
अरुण अधर जनु बिम्ब फल, नयन कमल अभिराम ||
पूर्ण इन्द्र अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज |
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्ण चन्द्र महाराज ||
चौपाई
जय यदुनन्दन जय जगवन्दन, जय वसुदेव देवकी नन्दन |
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे, जय प्रभु भक्तन के दृग तारे |
जय नटनागर नाग नथइया, कृष्ण कन्हैया धेनु चरइया |
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो, आओ दीनन कष्ट निवारो |
बंशी मधुर अधर धरि टेरी, होवे पूर्ण विनय यह मेरी |
आओ हरि पुनि माखन चाखो, आज लाज भारत की राखो |
गोल कपोल चिबुक अरुणारे, मृदु मुस्कान मोहिनी डारे |
रंजित राजिव नयन विशाला, मोर मुकुट बैजन्ती माला |
कुण्डल श्रवण पीतपट आछे, कटि किंकणी काछन काछे |
नील जलज सुन्दर तनु सोहै, छवि लखि सुर नर मुनि मन मोहै |
मस्तक तिलक अलक घुँघुँराले, आओ कृष्ण बांसुरी वाले |
करि पय पान, पूतनहिं तारयो, अका बका कागा सुर मारयो |
मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला, भये शीतल, लखितहिं नन्दलाला |
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई, मूसर धार वारि वर्षाई |
लगत-लगत ब्रज चहन बहायो, गोवर्धन नखधारि बचायो |
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई, मुख महँ चौदह भुवन दिखाई |
दुष्ट कंस अति उधम मचायो, कोटि कमल जब फूल मँगायो |
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें, चरणचिन्ह दे निर्भय कीन्हैं |
करि गोपिन संग रास विलासा, सबकी पूरण करि अभिलाषा |
केतिक महा असुर संहारियो, कंसहि केस पकड़ि दै मारयो |
मात-पिता की बन्दि छुड़ाई, उग्रसेन कहँ राज दिलाई |
महि से मृतक छहों सुत लायो, मातु देवकी शोक मिटायो |
भौमासुर मुर दैत्य संहारी, लाये षट दस सहस कुमारी |
दें भीमहिं तृणचीर संहारा, जरासिंधु राक्षस कहँ मारा |
असुर बकासुर आदिक मारयो, भक्तन के तब कष्ट निवारियो |
दीन सुदामा के दुःख टारयो, तंदुल तीन मुठि मुख डारयो |
प्रेम के साग विदुर घर माँगे, दुर्योधन के मेवा त्यागे |
लखी प्रेमकी महिमा भारी, ऐसे श्याम दीन हितकारी |
मारथ के पारथ रथ हांके, लिए चक्र कर नहिं बल थांके |
निज गीता के ज्ञान सुनाये, भक्तन हृदय सुधा वर्षाये |
मीरा थी ऐसी मतवाली, विष पी गई बजा कर ताली |
राणा भेजा साँप पिटारी, शालिग्राम बने बनवारी |
निज माया तुम विधिहिं दिखायो, उरते संशय सकल मिटायो |
तव शत निन्दा करि तत्काला, जीवन मुक्त भयो शिशुपाला |
जबहिं द्रोपदी टेर लगाई, दीनानाथ लाज अब जाई |
तुरतहि वसन बने नन्दलाला, बढे चीर भये अरि मुँह काला |
अस अनाथ के नाथ कन्हैया, डूबत भँवर बचावत नइया |
सुन्दरदास आस उर धारी, दयादृष्टि कीजै बनवारी |
नाथ सकल मम कुमति निवारो, क्षमहुबेगि अपराध हमारो |
खोलो पट अब दर्शन दीजै, बोलो कृष्ण कन्हैया की जय |
दोहा
यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करे उर धारि |
अष्ट सिद्धि नवनिद्धि फल, लहै पदारथ चरि ||
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