मंगलवार की प्राथना
गायत्री-मंत्र
ॐ भूर्भुवः स्वः |
तत्सवितुवर्रेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ||
हे प्राणस्वरूप, दुःखहर्ता और सर्वव्यापक, आनन्द के देने वाले प्रभो ! जो आप सर्वज्ञ और सकल जगत् के उत्पादक हैं, हम आपके उस पूजनीयतम, पापनाशक स्वरूप तेज का ध्यान करते हैं, जो हमारी बुद्धियों को प्रकाशित करता है | पिता ! आपसे हमारी बुद्धि कदापि विमुख न हो | आप हमारी बुद्धियों में सदैव प्रकाशित रहें और हमारी बुद्धियों को सत्कर्मों में प्रेरित करें, ऐसी प्रार्थना है |
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|| गणपति वंदना ||
गुरुर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः|
गुर्रुसाक्षात् परब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नमः ||
प्रणम्य शिरसा देवं, गौरीपुत्रं विनायकम् |
भक्तावासं स्मरे नित्यमायुः कामार्थ सिद्धये ||
वक्रतुण्ड महाकाय कोटि सूर्य समप्रभः |
निर्विघ्नं कुरमे देव सर्वकार्येपु सर्वदा ||
लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रिय |
निर्विघ्नं कुरमे देव सर्वकार्येपु सर्वदा ||
गजाननं भूतगणाधि सेवितं, कपित्थ जम्वूफलचारु भक्षणम् |
उमासुतं शोकविनाशकारक, नमामिविघ्ननेश्वरपादपङ्कजम् ||
सर्व विघ्न विनाशाय, सर्व कल्याण हेतवे |
पार्वती प्रिय पुत्राय, श्री गणेशाय नमोनमः ||
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|| आरती श्री गणेश जी की ||
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा |
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ||
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा |
लड्डुअन का भोग लगे, संत करे सेवा || जय ||
एक दन्त दयावन्त, चार भुजा धारी |
मस्तक सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी || जय ||
अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया |
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया || जय ||
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा |
शूरश्याम शरण में आये सुफल कीजे सेवा || जय ||
दीनन की लाज राखो, शंभू सूत वारी |
कामना को पूरी करो जग बलिहारी || जय ||
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|| आरती श्री लक्ष्मी जी की ||
ॐ जय लक्ष्मी माता, (मैया) जय लक्ष्मी माता |
तुमको निशिदिन सेवत, हर विष्णु धाता || ॐ ||
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता |
सूर्य – चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता || ॐ ||
दुर्गारूप निरंजनि, सुख -सम्पति दाता |
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋधि-सिधि-पाता || ॐ ||
तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभ दाता |
कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता || ॐ ||
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता |
सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता || ॐ ||
तुम बिन यज्ञ न होते, व्रत न कोई पाता |
खान पान का वैभव सब तुमसे आता || ॐ ||
शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि जाता |
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पाता || ॐ ||
महालक्ष्मी (जी) की आरती, जो कोई नर गाता |
उर आनंद समाता पाप उतर जाता || ॐ ||
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|| आरती श्री हनुमान जी की ||
आरती कीजै हनुमान लला की | दुष्टदलन रघुनाथ कला की ||
जा के बल से गिरिवर काँपे | रोग दोष जा के निकट न झाँके ||
अंजनी-पुत्र महा बलदाई | संतन के प्रभु सदा सहाई ||
दे बीरा रघुनाथ पठाये | लंका जारि सिया सुधि लाये ||
लंका सो कोट समुद्र सी खाई | जात पवन-सुत बार न लाई ||
लंका जारी असुर संहारे | सीता राम जी के काज सँवारे ||
लक्ष्मण मूर्छित पड़े संहारे | आनि संजीवन प्राण उबारे ||
पैठि पाताल तोरि जम-कारे | अहिरावन की भुजा उखारे ||
बाईं भुजा असुर संहारे | दाईं भुजा सब सन्त उबारे ||
सुर नर मुनिजन आरती उतारें | जय जय जय हनुमान जी उचारें ||
कंचन थार कपूर लौ छाई | आरती करत अंजनी माई ||
जो हनुमान जी की आरती गावै | बसि बैकुंठ परम पद पावै || _________________________________________________________
|| संकटमोचन हनुमानाष्टक ||
बाल समय रवि भझिलियो तब , तीनहुँ लोक भयो अंधियारो |
ताहि सो त्रास भयो जगको , यह संकट काहूसो जात न टारो |
देवन आनि करी विनती तब , छांड़ि दियो रवि कष्ट निवारो |
कोनहिं जानत है जग में कपि , संकट मोचन नाम तिहारो || १ ||
बालि की त्रास कपीस बसै गिरि , जात महाप्रभु पन्थ निहारो |
चौंकि महामुनि श्राप दियो तब , चाहिए कौन विचार विचारो |
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु , सोतुम दासके सोकनिवारो |
कोनहिं जानत है जग में कपि , संकट मोचन नाम तिहारो || २ ||
अंगद के संग लेन गये सिय , खोज कपीस यह बैन उचारो |
जीवत ना बचिहौं हमसों जु , बिना सुधि लाए इहां पग धारो |
हेरि थके तट सिन्धु सबै तब लाय , सिया सुधि प्रान उबारो |
कोनहिं जानत है जग में कपि , संकट मोचन नाम तिहारो || ३ ||
रावन त्रास दई सिय को जब , राक्षसि सों कहि सोक निवारो |
ताहि समय हनुमान महाप्रभु , जाय महा रजनीचर मारो |
चाहत सिय असोकसों आगिसु दै प्रभु मुद्रिका सोकनिवारो |
कोनहिं जानत है जग में कपि , संकट मोचन नाम तिहारो || ४ ||
बान लग्यो उर लछिमन के तब , प्रान तजे सुत रावन मारो |
लै गृह वैध सुषेन समेत , तबै गिरि द्रोन सुबीर उपरो |
आनिसंजीवन हाथदई तब , लछिमनके तुम प्रान उबारो |
कोनहिं जानत है जग में कपि , संकट मोचन नाम तिहारो || ५ ||
रावन युद्ध अजान कियो तब , नाग की फाँस सबै सिर डारो |
श्री रघुनाथ समेत सबै दल , मोह भयो यह संकट भारो |
आनिखगेस तबै हनुमानजु , बंधन काटिसुत्रास निवारो |
कोनहिं जानत है जग में कपि , संकट मोचन नाम तिहारो || ६ ||
बंधु समेत जबै अहिरावन लै रघुनाथ पाताल सिधारो |
देवहि पूजि भली विधि सों बलि , देउ सबै मिलिमंत्र बिचारो |
जाय सहाय भयो तब ही , अहिरावन सैन्य समेत संहारो |
कोनहिं जानत है जग में कपि , संकट मोचन नाम तिहारो || ७ ||
काज किए बड़ देवन के तुम , बीर महा प्रभु देखि विचारो |
कौन सो संकट मोर गरीब को , जो तुमसों नहिं जात है टारो |
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु , जो कुछ संकट होय हमारो |
कोनहिं जानत है जग में कपि , संकट मोचन नाम तिहारो || ८ ||
दोहा — लाल देह लाली लसै , अरु धरि लाल लंगूर |
वज्र देह दानव दलन , जय जय जय कपिसुर || _________________________________________________________
|| श्री बालाजी की आरती ||
ॐ जय हनुमत वीरा, स्वामी जय हनुमत वीरा |
संकट मोचन स्वामी, तुम हो रणधीरा || ॐ ||
पवन-पुत्र अंजनी-सुत, महिमा अति भारी |
दुःख दारिद्रय मिटाओ, संकट छय हारी || ॐ ||
बाल समय में तुमने, रवि को भक्ष लियो |
देवन स्तुति कीन्ही, तुरतहिं छोड़ दियो || ॐ ||
कपि सुग्रीव राम संग, मैत्री करवाई |
अभिमानी बलि मेट्यो, कीर्ति रही छाई || ॐ ||
जारि लंक सिय-सुधि ले आए, वानर हर्षाये |
कारज कठिन सुधारे, रघुबर मन भाये || ॐ ||
शक्ति लगी लक्ष्मण को, भारी सोच भयो |
लाय संजीवन बूटी, दुःख सब दूर कियो || ॐ ||
रामहिं ले अहिरावण, जब पाताल गयो |
ताहि मारि प्रभु लाये, जय जयकार भयो || ॐ ||
राजत मेहंदीपुर में, दर्शन सुखकारी |
मंगल और शनिश्चर, मेला है जारी || ॐ ||
श्री बालाजी की आरती, जो कोई नर गावे |
कहत इन्द्र हर्षित, मन वांछित फल पावे || ॐ ||
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|| हनुमान जी की आरती ||
ॐ जय हनुमत बांके, स्वामी जय हनुमत बांके |
तुम्हारे बल पराक्रम से, रावण दल कांपे || ॐ ||
कटि पर लाल लंगोट विराजे, कर में गदाधरी |
असुरानंद निरखते, रावण से बलकारी || ॐ ||
सात समुंदर लंघन कीन्हो, बाग विध्वंस कियो |
माता की सुधि लाये, लंका ध्वंस कियो || ॐ ||
लंका तोड़ी पलंका तोड़ी, रावण गढ़ तोड़े |
राम जी के काज संवारे, नष्ट करि लंके || ॐ ||
अहिरावण को मारो, धरि देवी रूपा |
कृपा करो नित मोपे, जय जय सुर भूपा || ॐ ||
हनुमत बलधारी तुम देवन हितकारी |
निज भक्तन की करते, हो प्रभु रखवारी || ॐ ||
हनुमान वीर जी की आरती, जो कोई नर गावै |
‘कमलानंद’ कहे सो, बल-बुद्धि पावै || ॐ ||
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|| मंगल वार की पावन आरती ||
मंगल मूरति जय जय हनुमंता, मंगल-मंगल देव अनंता |
हाथ व्रज और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजे ||
शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जगवंदन |
लाल लंगोट लाल दोऊ नयना, पर्वत सम फारत है सेना ||
काल अकाल जुद्ध किलकारी, देश उजारत क्रुद्ध अपारी |
रामदूत अतुलित बलधामा, अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ||
महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी |
भूमि पुत्र कंचन बरसावे, राजपाट पुर देश दिवावे ||
शत्रुन काट-काट महिं डारे, बंधन व्याधि विपत्ति निवारे |
आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक ते कांपै ||
सब सुख लहै तुम्हारी शरणा, तुम रक्षक काहू को डरना |
तुम्हरे भजन सकल संसारा, दया करो सुख दृष्टि अपारा ||
रामदण्ड कालहु को दण्डा, तुम्हरे परसि होत जब खण्डा |
पवन पुत्र धरती के पूता, दोऊ मिल काज करो अवधूता ||
हर प्राणी शरणागत आए, चरण कमल में शीश नवाए |
रोग शोक बहु विपत्ति घराने, दुःख दरिद्र बंधन प्रकटाने ||
तुम तज और न मेटनहारा, दोऊ तुम हो महावीर अपारा |
दारिद्र दहन ऋण त्रासा, करो रोग दुःख स्वप्न विनाशा ||
शत्रुन करो चरन के चेरे, तुम स्वामी हम सेवक तेरे |
विपत्ति हरन मंगल देवा, अंगीकार करो यह सेवा ||
मुद्रित भक्त विनती यह मोरी, देऊ महाधन लाख करोरी |
श्रीमंगलजी की आरती हनुमत सहितासु गाई |
होई मनोरथ सिद्ध जब अंत विष्णुपुर जाई ||
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|| श्री बजरंग बाण का पाठ ||
दोहा :
निष्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान |
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान ||
चौपाई :
जय हनुमंत संत हितकारी | सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ||
जन के काज बिलंब न कीजै | आतुर दौरि महा सुख दीजै ||
जैसे कूदि सिंधु महिपारा | सुरसा बदन पैठि बिस्तारा ||
आगे जाय लंकिनी रोका | मारेहु लात गई सुरलोका ||
जाय विभीषन को सुख दीन्हा | सीता निरखि परमपद लीन्हा ||
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा | अति आतुर जमकातर तोरा ||
अक्षय कुमार मारि संहारा | लूम लपेटि लंक को जारा ||
लाह समान लंक जरि गई | जय जय धुनि सुरपुर नभ भई ||
अब बिलंब केहि कारन स्वामी | कृपा करहु उर अंतरयामी ||
जय जय लखन प्रान के दाता | आतुर ह्वै दुःख करहु निपाता ||
जै हनुमान जयति बल-सागर | सुर-समूह-समरथ भट-नागर ||
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले | बैरिहि मारु बज्र की कीले ||
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा | ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा ||
जय अंजनि कुमार बलवंता | शंकरसुवन बीर हनुमंता ||
बदन कराल काल-कुल-घालक | राम सहाय सदा प्रतिपालक ||
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर | अगिन बेताल काल मारी मर ||
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की | राखु नाथ मरजाद नाम की ||
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै | राम दूत धरु मारु धाइ कै ||
जय जय जय हनुमंत अगाधा | दुख पावत जन केहि अपराधा ||
पूजा जप तप नेम अचारा | नहिं जानत कछु दास तुम्हारा ||
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं | तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं ||
जनकसुता हरि दास कहावौ | ताकी सपथ बिलंब न लावौ ||
जै जै जै धुनि होत अकासा | सुमिरत होय दुसह दुख नासा ||
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं | यहि औसर अब केहि गोहरावौं ||
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई | पायँ परौं, कर जोरि मनाई ||
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता | ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता ||
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल | ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल ||
अपने जन को तुरत उबारौ | सुमिरत होय आनंद हमारौ ||
यह बजरंग-बाण जेहि मारै | ताहि कहौ फिरि कवन उबारै ||
पाठ करै बजरंग-बाण की | हनुमत रक्षा करै प्रान की ||
यह बजरंग बाण जो जापैं | तासों भूत-प्रेत सब कापैं ||
धूप देय जो जपै हमेसा | ताके तन नहिं रहै कलेसा ||
दोहा :उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान ||
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान ||
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|| श्री हनुमान चालीसा ||
श्री गुरु चरण सरोज रज , निज मन मुकुरि सुधारि |
वरनऊँ रघुवर विमल जासु , जो दायक फल चारि ||
बुद्धिहीन तनु जानि के , सुमिरों पवन कुमार |
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि , हरहु कलेस विकार ||
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर | जय कपीस तिहुंलोक उजागर ||
राम दूत अतुलित बल धामा | अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ||
महाबीर विक्रम बजरंगी | कुमति निवार सुमति के संगी ||
कंचन बरन विराज सुबेसा | कानन कुण्डल कुंचित केसा ||
हाथ वज्र औ ध्वजा विराजै | काँधे मूँज जनेऊ साजै ||
शंकर सुवन केसरी नन्दन | तेज प्रताप महा जग बन्दन ||
विद्यावान गुनी अति चातुर | राम काज करिबे को आतुर ||
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया | राम लखन सीता मन बसिया ||
सुक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा | विकट रूप धरि लंक जरावा ||
भीम रूप धरि असुर संहारे | रामचंद्र जी के काज संवारे ||
लाय संजीवन लखन जियाये | श्री रघुवीर हरषि उर लाये ||
रघुपति किन्हीं बहुत बड़ाई | तुम ममप्रिय भरत सम भाई ||
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं | असकहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ||
सनकादिक ब्रह्मादि मुनिसा | नारद सारद सहित अहीसा ||
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते | कवि कोविद कहि सके कहाँ ते ||
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा | राम मिलाय राज पद दीन्हा ||
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना | लंकेश्वर भए जब जग जाना ||
जुग सहस्र जोजन पर भानू | लील्यो ताहि मधुरफल जानू ||
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं | जलधि लांघि गये अचरज नाहीं ||
दुर्गम काज जगत के जेते | सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||
राम दुआरे तुम रखवारे | होत न आज्ञा बिनु पैसारे ||
सब सुख लहै तुम्हारी सरना | तुम रक्षक काहू को डरना ||
आपन तेज सम्हारो आपै | तीनों लोक हाँक ते काँपे ||
भूत पिशाच निकट नहिं आवै | महाबीर जब नाम सुनावै ||
नासै रोग हरे सब पीरा | जपत निरन्तर हनुमत बीरा ||
संकट ते हनुमान छुड़ावै | मनक्रम वचन ध्यान जो लावै ||
सब पर राम तपस्वी राजा | तिनके काज सकल तुम साजा ||
और मनोरथ जो कोई लावै | सोई अमित जीवन फल पावै ||
चारों जुग परताप तुम्हारा | है प्रसिद्ध जगत् उजियारा ||
साधु सन्त के तुम रखवारे | असुर निकन्दन राम दुलारे ||
अष्टसिद्धि नवनिधि के दाता | अस वर दीन जानकी माता ||
राम रसायन तुम्हरे पासा | सदा रहो रघुपति के दासा ||
तुम्हरे भजन राम को भावै | जनम जनम के दुःख बिसरावै ||
अन्त काल रघुवर पुर जाई | जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ||
और देवता चित्त न धरई | हनुमत सेई सर्व सुख करई ||
संकट कटै मिटै सब पीरा | जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ||
जै जै जै हनुमान गुसाई | कृपा करहु गुरुदेव की नाई ||
जो सत बार पाठ करे कोई | छूटहिं बंदि महा सुख होई ||
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा | होय सिद्धि साखी गौरीसा ||
तुलसी दास सदा हरि चेरा | कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ||
दोहा – पवन तनय संकट हरन , मंगल मूरति रूप |
राम लखन सीता सहित , हृदय बसहु सुर भूप || _________________________________________________________
|| अथ ऋण मोचक मंगल स्तोत्र ||
श्री गणेशाय नमः
“मैं श्री गणेश जी को नमस्कार करता हूँ”
१. हे मंगल देवता आप भूमिपुत्र हैं | ऋण को समाप्त करके धन देने वाले हैं |
२. हे मंगल भगवान् आप महान शरीर वाले , स्थिर आसन तथा सब कर्मों से परे हैं |
३. हे मंगल देव आप रक्त वर्ण के हैं | आपके सभी अंग रक्त के समान लाल रंग के हैं |
४. हे मंगल देव आप सामदेव मंत्रों से स्तुति (कीर्तन) करने वालों पर कृपा दृष्टि रखते हैं |
५. हे मंगल देव आपकी स्तुति अनेक नामों से गायी जाती है | आपके ये नाम भूमिपुत्र, कुंज, भूमिनन्दन, अंगाकर, यम, सर्वरोग हर्ता भूतिदः ( सब भौतिक पदार्थ देने वाले ) सुखों की वर्षा करने वाले मनुष्यों को सभी कुछ देने वाले तथा सभी प्रकार के शुभ-अशुभ फल देने वाले हैं |
६. इस प्रकार विभिन्न नामों से श्रद्धा-पूर्वक जो व्यक्ति मंगल देवता का नित्य स्तुति का पाठ करते हैं या सुनते हैं वे शीघ्र ही ऋण के भार से मुक्त होकर धनवान बन जाते हैं |
७. मैं पृथ्वी माता के गर्भ से जन्म लेने वाले धरणी पुत्र विधुत प्रभु के समान उज्ज्वल कान्ति वाले , हाथ में शक्ति धारण किए हुए कुमार मंगल को प्रणाम करता हूँ |
८. इस मंगल स्तोत्र का मनुष्यों को सदा पाठ करना चाहिये | जो व्यक्ति मंगल देव के इस स्तोत्र का पाठ करते हैं उन्हें कदापि किंचित् मात्र भी मंगल कृपा पीड़ा नहीं होती है |
९. हे मंगल भगवान् , हे महाभाग , हे अंगारक आप भक्तों पर कृपा करने वाले हैं | मैं आपको नमस्कार करता हूँ | कृपया शीघ्र मेरे ऋण भार को समाप्त करें |
१०. हे मंगल भगवान् आप मेरे ऋण, रोग, दरिद्रता, अपमृत्यु, भय, क्लेश तथा मानसिक सन्ताप को शीघ्र हर लें |
११. हे मंगल भगवान् आपकी गति बड़ी टेढ़ी है | आपकी अराधना बड़ी कठिन है | आप सब प्रकार के भागों से युक्त एवं जीवात्मा हैं | आप प्रसन्न होने पर साम्राज्य प्रदान कर देते हैं तथा रुष्ठ हो जाएं तो ब्रह्मा, इन्द्र, विष्णु भगवान् आदि देवों के साम्राज्य को ही हर लेते हैं | मनुष्य की बात तो क्या है |
१२. हे महाबली ग्रहराज , मैं आपकी शरणागत हूँ | मुझे सब प्रकार के सत्त्व-पुत्र एवं धन दीजिए | आप मुझे ऋण दरिद्रता, दुःख एवं शत्रुभय से मुक्ति दिलावें | _________________________________________________________
|| आरती जय जगदीश हरे ||
ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु जय जगदीश हरे |
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे || ॐ ||
जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिन से मन का |
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का || ॐ ||
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूॅं किसकी |
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी || ॐ ||
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी |
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी || ॐ ||
तुम करुणा के सागर, तुम पालन कर्त्ता |
मैं मूर्ख खल कामी, कृपा करो भर्ता || ॐ ||
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति |
किस विधि मिलूँ दयामय ! तुमको मैं कुमति || ॐ ||
दीनबन्धु दुःखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे |
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे || ॐ ||
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा |
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा || ॐ ||
तन, मन, धन जो कुछ है, सब ही है तेरा |
तेरा तुझको अर्पित, क्या लागे मेरा || ॐ ||
ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु जय जगदीश हरे |
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे || ॐ ||
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