|| श्री गोपाल ध्यानम् ||
कस्तूरी तिलकं ललाट पतले वक्षःस्थले कौस्तुभम्,
नासाग्रे वरमोक्तिकं करतले वेणुं करे कंकणम् ||
सर्वाङ्गे हरिचन्दन सुललितं कण्ठे च मुक्तावली,
गोपस्त्रीपरिवेष्ठितों विजयते गोपाल चूड़ामणि ||
ल्लेफुन्दीवरकान्तिमिन्दुवदनं बर्हावतंसप्रियम्,
श्रीवत्सांकमुदारकौस्तुतभधरं पीताम्बरं सुन्दरम् ||
गोपीनां नयनोत्पलार्चिततषुं गोगोपसंघावृत्तम्।
गोविन्दं कलवेणुवादन परं दिव्यांगभूषं भजे ||
_________________________________________________________
|| श्री राधा-कृष्णजी की आरती ||
ॐ जय श्री राधा जय श्री कृष्ण
श्री राधा कृष्णाय नमः ||
घूम घुमारो घामर सोहे जय श्री राधा
पट पीतांबर मुनि मन मोहे जय श्री कृष्ण |
जुगल प्रेम रस झम झम झमकै
श्री राधा कृष्णाय नमः ||
राधा राधा कृष्ण कन्हैया जय श्री राधा
भव भव सागर पार लगैया जय श्री कृष्ण |
मंगल मूरति मोक्ष करैया
श्री राधा कृष्णाय नमः ||
_________________________________________________________
|| आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला |
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला |
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली |
लतन में ठाढ़े बनमाली, भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की |
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं |
गगन सों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की |
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा |
स्मरन ते होत मोह भंगा, बसी शिव सीस, जटा के बीच, हरै अध कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की |
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू |
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू, हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की |
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ||
_________________________________________________________
|| श्री कृष्ण जी की आरती ||
ॐ जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय श्री कृष्ण हरे,
भक्तन के दुःख सारे पल में दूर करे || ॐ जय ||
परमानन्द मुरारी मोहन गिरधारी,
जय रस रास बिहारी जय जय गिरधारी || ॐ जय ||
कर कंकन कटि सोहत कानन में बाला,
मोर मुकुट पीताम्बर सोहे बनमाला || ॐ जय ||
दीन सुदामा तारे दरिद्रों के दुःख टारे,
गज के फन्द छुड़ाए भव सागर तारे || ॐ जय ||
हिरण्यकश्यप संहारे नरहरि रूप धरे,
पाहन से प्रभु प्रगटे यम के बीच परे || ॐ जय ||
केशी कंस विदारे नल कूबर तारे,
दामोदर छवि सुन्दर भगतन के प्यारे || ॐ जय ||
काली नाग नथैया नटवर छवि सोहे,
फन-फन नाचा करते नागन मन मोहे || ॐ जय ||
राज्य उग्रसेन पाए, माता शोक हरे,
द्रुपद सुता पत राखी, करुणा लाज भरे || ॐ जय ||
_________________________________________________________
||आरती श्री कृष्ण जी की ||
जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय जय गिरधारी |
दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हित कारी || जय श्री ||
जय गोविन्द दयानिधि, गोवर्धन धारी |
वंशीधर बनवारी, ब्रज जन प्रियकारी || जय श्री ||
गणिका गोध अजामिल गजपति भयहारी |
आरत-आरति हारी, जय मंगल कारी || जय श्री ||
गोपालक गोपेश्वर, द्रौपदी दुखदारी |
शबर-सुता सुखकारी, गौतम-तिय तारी || जय श्री ||
जन प्रहलाद प्रमोदक, नरहरि तनु धारी |
जन मन रंजनकारी, दिति-सुत संहारी || जय श्री ||
टिट्टिभ-सुत सरंक्षक, रक्षक मंझारी |
पाण्डु सुवन शुभकरी, कौरव मद हारी || जय श्री ||
मन्मथ-मन्मथ मोहन, मुरली-रव कारी |
वृन्दाविपिन बिहारी, यमुना तट चारी || जय श्री ||
अध्-बक-बकी उधारक, तृणावर्त तारी |
बिधि-सुरपति मदहारी, कंस मुक्तिकारी || जय श्री ||
शेष, महेश, सरस्वती, गन गावत हारी |
कल कीरति विस्तारी, भक्त भीति हारी || जय श्री ||
‘नारायण’ शरणागत, अति अघ अघहारी |
पद-रज पावनकारी, चाहत चितहारी || जय श्री ||
_________________________________________________________
|| आरती श्री राधा जी की ||
आरती श्री राधा जी की कीजै | टेक….
कृष्ण संग जो कर निवासा, कृष्ण करे जिन पर विश्वासा |
आरती वृषभानु लली की कीजै || आरती… ||
कृष्णचन्द्र की करी सहाई, मुंह में आनि रूप दिखाई |
उस शक्ति की आरती कीजै || आरती…. ||
नंद पुत्र से प्रीति बढ़ाई, यमुना तट पर रास रचाई |
आरती रास रसाई की कीजै || आरती…. ||
प्रेम राह जिनसे बतलाई, निर्गुण भक्ति नहीं अपनाई |
आरती राधा जी की कीजै || आरती…. ||
दुनिया की जो रक्षा करती, भक्तजनों के दुःख सब हरती |
आरती दुःख हरणीजी की कीजै || आरती…. ||
दुनिया की जो जननी कहावे, निज पुत्रों की धीर बंधावे |
आरती जगत माता की कीजै || आरती…. ||
निज पुत्रों के काज संवारे, रनवीरा के कष्ट निवारे |
आरती विश्वमाता की कीजै || आरती…. ||
_________________________________________________________