गायत्री-मंत्र

ॐ भूर्भुवः स्वः |
तत्सवितुवर्रेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ||

हे प्राणस्वरूप, दुःखहर्ता और सर्वव्यापक, आनन्द के देने वाले प्रभो ! जो आप सर्वज्ञ और सकल जगत् के उत्पादक हैं, हम आपके उस पूजनीयतम, पापनाशक स्वरूप तेज का ध्यान करते हैं, जो हमारी बुद्धियों को प्रकाशित करता है | पिता ! आपसे हमारी बुद्धि कदापि विमुख न हो | आप हमारी बुद्धियों में सदैव प्रकाशित रहें और हमारी बुद्धियों को सत्कर्मों में प्रेरित करें, ऐसी प्रार्थना है |
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शान्ति पाठ

ॐ धौ: शान्तिरन्तरिक्ष शान्तिः पृथ्वी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः | वनस्पतयः शांतिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सामा शान्तिरेधि || ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ओउम् ||
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नव ग्रह शान्ति पाठ

ॐ ब्रह्मा मुरारि त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च गुरुश्च शुक्रः शनि राहु केतवः सर्वे ग्रहां शान्ति करा भवन्तु |
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गीता सार 

  • क्यों व्यर्थ चिन्ता करते हो ? किससे व्यर्थ डरते हो ? कौन तुम्हे मार सकता है ? आत्मा न पैदा होता है, न मरता है | 
  • जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है | जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा | तुम भूत का पश्चाताप न करो |  भविष्य की चिन्ता न करो | वर्तमान चल रहा है |
  • तुम्हारा क्या गया, जो रोते हो? तुम क्या लाये थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया, यहीं से लिया| जो दिया, यहीं पर दिया | जो लिया इसी (भगवान) से लिया | जो दिया, इसी को दिया | खाली हाथ आए, खाली हाथ चले | जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का है, परसों किसी और का होगा | तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो| बस, यही प्रसन्नता तुम्हारे दुःखों का कारण है | 
  • परिवर्तन संसार का नियम है | जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है | एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम द्ररिद्र हो जाते हो, मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, विचार से हटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सब के हो | 
  • न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम इस शरीर के हो | यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा | परंतु आत्मा स्थिर है, फिर तुम क्या हो?
  • तुम अपने आपको भगवान के अर्पित करो | यही सबसे उत्तम सहारा है | जो इसके सहारे को जानता है, वह भय, चिंता, शोक से सर्वदा मुक्त है | 
  • जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल | ऐसा करने से तू सदा जीवन-मुक्त का आनन्द अनुभव करेगा |  

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